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व्रत कथा कोष
अशोकरोहिणी व्रत
दोहा - व्रत शोकरोहिणी तनो, करहें जे भवि जीव । सात बीस प्रोषध सकल धरत्रिशुद्धिता कीव ॥
प्रडिल्ल छंद - जिस
ताके
दिन महा नक्षत्र रोहिणी प्राय है । प्रोषध करे सकल सुखदाय है । अनुक्रमतें उपवास सत्ताईस जानिये । सवा द्वय माहि पूर्णता मानिये ।
बरस
[ १२५
- कि. सिं. क्रि.
भावार्थ :-- - यह व्रत दो वर्ष और तीन महिने में पूर्ण होता है । प्रत्येक मास में रोहिणी नक्षत्र के दिन उपवास करे । नमस्कार मन्त्र का त्रिकाल जाप्य करे । व्रत समाप्त होने पर उद्यापन करे ।
वह व्रत अंग देश में चम्पा नगरी के राजा मघवा की पुत्री रोहिणी तथा हस्तिनापुर के राजा वीतशोक के पुत्र प्रशोक ने किया था, जिससे दोनों पति-पत्नी स्वर्गादिक सुख भोग मोक्ष को प्राप्त हुए ।
अनस्तमी व्रत
अनस्तमी व्रत विधि इम पाल, घटिका द्वय रवि श्रघवत टाल । दिवस उदय घटिका द्वय चढ़ े, चहुं प्रकार ग्राहाहि तजै ।।
- किं. सि. क्रि.
भावार्थ :- यह व्रत जीवन पर्यन्त के लिए ग्रहरण किया जाता है । दो घड़ी ( ४८ मिनट) दिन चढ़ने के बाद और २ घड़ी दिन शेष रहने के पहले भोजन से निवृत्त हो जाये । शेष समय में चारों प्रकार के प्रहारों का त्याग करे । प्रतिदिन त्रिकाल नमस्कार मन्त्र का जाप्य करे ।
मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर के एक बगीचे में सागरसेन नाम के मुनि के पास माँस का लोलुपी एक स्यार आया । मुनिराज ने उसे धर्मोपदेश देकर रात्रिभोजन त्याग का व्रत दिया । उस स्यार ने उसका जीवन पर्यन्त भावपूर्वक पालन