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व्रत कथा कोष
अविनाशी मोक्षसुख को प्राप्त कर सकता है । मनुष्यों का निवास मध्यलोक ही में है । इसलिये मनुष्य क्षेत्र का कुछ संक्षिप्त परिचय देकर कथाओं का प्रारम्भ करेंगे |
लोकाकाश के मध्य में १ राजू चौड़ा १ राजू लम्बा मध्यलोक है । जिसमें सजीवों का निवास १ राजू लम्बे और १ राजू चौड़े क्षेत्र ही में है । ( मध्यलोक का आकार 0.000) इस १ राजू मध्यलोक के क्षेत्र में जंबूद्वीप और लवण समुद्र आदि असंख्यात द्वीप और समुद्र के चूड़ी के आकारवत् एक-दूसरे को घेरे हुए द्वीप से दूना समुद्र और समुद्र से दूना द्वीप इस प्रकार दूने दूने विस्तार वाले हैं ।
इन प्रसंख्यात द्वीप समुद्रों के मध्य में थाली के आकार का गोल एक लाख महायोजन व्यास वाला जम्बूद्वीप है । इसके प्रास-पास लवण समुद्र, फिर धातकी खण्डद्वीप, फिर कालोदधि समुद्र और फिर पुष्कर - द्वीप के बीचोंबीच एक गोल दीवार के आकार वाले पर्वत से ( जिसे मानुषोत्तर पर्वत कहते हैं ) दो भागों में बटा हुआ है । इस पर्वत के उस ओर मनुष्य नहीं जा सकता है । इस प्रकार जम्बू, धातकी और पुष्कर प्राधा ( ढाई द्वीप ) और लवण तथा कालोदधि ये दो समुद्र मिलकर ४५ महायोजन व्यास वाला क्षेत्र मनुष्यलोक कहलाता है और इतने क्षेत्र से मनुष्य रत्नत्रय को धारण करके मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं ।
जीव कर्म से मुक्त हो जाने पर अपनी स्वाभाविक गति के अनुसार ऊर्ध्व - गमन करते हैं । इसलिए जितने क्षेत्र से जीव मोक्ष प्राप्त करके ऊर्ध्वगमन करके लोक-शिखर के अन्त में जाकर धर्मद्रव्य का आगे प्रभाव होने के कारण अधर्म द्रव्य की सहायता से ठहर जाते हैं; उतने ( लोक के अन्त वाले) क्षेत्र को सिद्ध क्षेत्र कहते हैं । इस प्रकार सिद्ध क्षेत्र भी पैंतालीस लाख योजन का ही ठहरा ।
इस ढाई द्वीप में पांच मेरु और तीन सम्बन्धी बीस विदेह तथा पांच भरत और पांच ऐरावत क्षेत्र हैं । इन क्षेत्रों में से जीव रत्नत्रय से कर्म नाश कर सकते हैं । इसके सिवाय और कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां भोगभूमि [ युगलियों ] की रीति प्रचलित है । अर्थात् वहां के जीव मनुष्यादि अपनी सम्पूर्ण श्रायु विषय-भोगों ही में बिताया करते हैं । वे भोगभूमियां उत्तम, मध्यम, जघन्य ३ प्रकार