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________________ व्रत कथा कोष [ १०७ प्रमोद से आहारादि चतुर्प्रकार दान देवे । भगवान् जिनेन्द्र के शासन का माहात्म्य प्रकट कर खूब प्रभावना करे । इस प्रकार अपनी शक्ति के अनुसार उद्यापन कर व्रत विसर्जन करें। भाद्रपदमास में व्रतों की प्रधानता अहो भाद्रपदारव्योऽयं मासोऽनेकवताकरः । धर्महेतुपरो मध्येऽन्यमासानां नरेन्द्रवत् ॥ ___ - मल्लिपुराणे भावार्थ :-जिस प्रकार मनुष्यों में श्रेष्ठ राजा माना जाता है, उसी प्रकार समस्त मासों में भाद्रपद मास भी श्रेष्ठ है । क्योंकि वह अनेक प्रकार के व्रतों का स्थान-स्वरूप है और धर्म का प्रधान कारण है । व्रत करने का फल अनेकपुण्यसंतानकारणं स्वनिर्ब धनम् । पापघ्नं च कमादेतत् व्रतं मुक्तिवशीकरम् ।। यो विधत्त व्रतं सारमेतत्सर्बसुखावहम् ॥ प्राप्य षोडशभं नाकं स गच्छेत् क्रमशः शिवम् ।। भावार्थ :-व्रत अनेक पुण्य की संतान का कारण है, स्वर्ग का कारण है, संसार के समस्त पापों का नाश करने वाला है एवं मुक्तिलक्ष्मी को वश में करने वाला है, जो महानुभाव सर्वसुखोत्पादक श्रेष्ठ व्रत धारण करते हैं वे सोलहवें स्वर्ग के सुखों का अनुभव कर अनुक्रम से अविनाशी मोक्षसुख को प्राप्त करते हैं। व्रतीश्रावक के भोजन के अन्तराय द्रष्टवाऽऽ चर्मास्थिसुरा मांसास्त्रकपूयपूर्वकम् । स्पष्टवा रजस्वलाशुष्कचर्मास्थिशुनकादिकम् ।। श्रत्वातिकर्कशाकन्द-विडवरप्राय-निः स्वनम् । भक्त्वा नियमितं वस्तु भोज्येऽशक्यविवेचनैः ।। संसृष्टे सति जीवद्भिर्जीवैर्वा बहुभिर्मूतैः । इदं मांसमिति दृष्टं संकल्पे चाशनं त्यजेत् ।।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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