SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्रत कथा कोष भावार्थ-फिर मन्दिर जी में जाकर प्रदक्षिणा देवे और व्रतविधान में कहे गये मंत्रों का जाप्य करे । व्रत का उद्यापन --..-. संपूर्णे ह्यनु कर्त्तव्यं स्वशक्त्योद्यापनं बुधैः । सर्वथा येऽप्यशक्त्यादिव्रतोद्यापन सुविधौ ।। भावार्थ :-व्रतमर्यादा पूर्ण हो जाने पर स्वशक्ति के अनुसार उद्यापन करे, यदि उद्यापन की शक्ति न होवे तो व्रत का जो बिधान (मर्यादा) है, उससे दुगुना करे। उद्यापन विधि कर्तव्यं जिनागारे महाभिषेकमद्भुतम् । संधैश्चतुर्विधै सार्ध महापूजादिकोत्सवम् ॥ घण्टाचामरचंद्रोपक भंगार्यातिकादयः । धर्मोपकरणान्येवं देयं भक्त्या स्वशक्तितः।। पुस्तकादि महादानं भक्त्या देयं वृषाकरम् । महोत्सवं विधेयं सुवायगीतादिनर्तनः ।। चतुविधाय संघायाहारदानादिकं मुदा । प्रामंत्र्य परया भक्त्या देयं सम्मानपूर्वकम् ॥ प्रभावना जिनेन्द्राणां शासनं चैत्यधामनि । कुर्वन्तु यथाशक्त्या स्तोकं चोद्यापनं मुदा ॥ भावार्थ-खूब ऊंचे-ऊँचै विशाल जिनमंदिर बनवाये और उनमें बड़े समी रोहपूर्वक प्रतिष्ठा कराकर जिम प्रतिमा विराजमान करे । पश्चात् चतुर्प्रकार संघ के साथ प्रभावनापूर्वक महा अभिषेक कर महापूजा करे । पश्चात् घण्टा, झालर, चमर, छत्र, सिंहासन, चंदोवा, झारी, भृगारी, पारती अनेक धर्मोपकरण शक्ति के अनुसार भक्तिपूर्वक देवे । प्राचार्यादि महापुरुषों को धर्मवृद्धि हेतु शास्त्र प्रदान करें । और उत्तमोत्तम बाजे, गीत और नृत्य आदि के अत्यन्त आलोचन से मन्दिर में महान् उत्सव करें। चतुर्विध संघ को विशिष्ट सम्मान के साथ भक्तिपूर्वक बुलाकर अत्यन्त
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy