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व्रत कथा कोष
भावार्थ:-व्रत-रहित प्राणी निःसंदेह पशु के समान ही है। जिसे योग्यायोग्य का ज्ञान नहीं है, ऐसे मनुष्य मौर पशु में क्या भेद है ? कुछ भी नहीं ।
व्रत का लक्षण संकल्प पूर्वकः सेव्ये नियमोऽशुभकर्मणः ।
निवृतिर्वा व्रतं स्याद्वा प्रवृत्तिः शुभकर्मणि ॥
भावार्थ :-सेवन करने योग्य विषयों में संकल्प पूर्वक निमय करना, अथवा हिंसादिक अशुभ कर्मों से संकल्प पूर्वक विरक्त होना, अथवा पात्रदानादिक शुभ कर्मों में संकल्प पूर्वक प्रवृति करना, व्रत कहलाता है ।
यथाशक्ति प्रत पालन करना आवश्यक है पंचम्यादि विधिं कृत्वा शिवान्ताभ्युदयप्रदम् ।
उद्योतयेद्यथासम्पन्निमिते प्रोत्सहेन्मनः ॥
भावार्थ :--मोक्ष पर्यन्त इन्द्र, चक्रवर्ती आदि पदों के अभ्युदय को देने वाले, पंचमी, पुष्पाञ्जलि, मुक्ताबली, रत्नत्रयादिक व्रतों को शास्त्रानुसार ग्रहण करके अपनी शक्ति और सम्पत्ति के अनुसार उनका उद्यापन कराये, क्योंकि दैनिक (नित्य) क्रियाओं की अपेक्षा नैमितिक क्रियाओं के करने में मन अधिक उत्साह को प्राप्त होता है।
. प्रत अनशन का ही भेद है साकार-सर्वतोभद्र-सिंहनिष्क्रीड़ितादयः। साकांक्षस्योपवासस्य भेदाश्चैकान्तरादयः ।।
-आचारसार भावार्थ :--साकार, सर्वतोभद्र, सिंहनिष्क्रीड़ित, उपवास और एकाशनादि ये सभी साकांक्ष अनशन के भेद हैं ।
व्रत निरतिचारपूर्वक ही पालन करना चाहिए
व्रतानि पुण्याय भवन्ति जन्तो, नं. सातिचाररिण निषेवितानि । शस्यानि कि क्वापि फलन्ति लोके, मलोपलीढानि कदाचनापि ॥
-सा. ध.