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________________ ६६ ] व्रत कथा कोष तथा पन्द्रहवां भाग्य नामक मुहूर्त्त है, जिसका अर्धभाग शुभ और अर्धभांग अशुभ माना गया है । इस प्रकार दिन के पन्द्रह मुहूर्त्त में से षष्ठांश प्रभाव तिथि में पांच मुहूर्त्त भाते हैं । प्रातःकाल में रौद्र, श्वेत, मैत्र, सारभट और दैत्य ये पांच मुहूर्त मध्यम मान से सूर्योदय से दस घटो समय तक रहते हैं । दैत्य मुहूर्त्त तिथि का शासक होता है, तथा पांचों मुहूर्त्त दिन के तृतीयांश भाग में भुक्त होते हैं, अतः कम-से-कम तिथि का मान दस घटी या षष्ठांश मात्र मानना आवश्यक है । क्योंकि शासक मुहूर्त के ये बिना तिथि अपना प्रभाव ही नहीं दिखला सकती है । शासक मुहूर्त्त षष्ठांश प्रमाण तिथि के मानने पर ही आता है; अतः दस घटी से न्यून तिथि का प्रमाण व्रत के लिए ग्राह्य नहीं किया जा सकता । व्रतविधि में जाप, सामायिक, पूजा-पाठ, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण आदि क्रियाएं व्रत की तिथि में दैत्य मुहूर्त तक होनी चाहिए । क्योंकि समस्त तिथि दैत्य मुहूर्त्त के अनुसार ही अपना कार्य करती है । जिस व्रत तिथि में पांचवां मुहूर्त्त नहीं पड़ता है, वह तिथि व्रत के लिए ग्राह्य नहीं मानी जा सकती । आचार्य महाराज ने इसी कारण तिथि के षष्ठांश के ग्रहण करने पर जोर दिया है । तिथिह्रास होने पर तृतीया व्रत का विधान - तिथि र्नष्टकलातोऽथ तृतीया व्रतमुच्यते वर्णाश्रमेतराणां च युक्तं तृतीयाहासकम् । इत्यनन्तव्रतारभ्येति कृष्णसेनेन चोदितम् ॥ अर्थ - तिथि ऋण होने पर अथवा तिथि का घट्यात्मक मान कम होने पर तृतीया व्रत का नियम कहते हैं । वर्णाश्रमधर्म को न मानने वाले श्रमण संस्कृति के प्रतिष्ठापक तृतीया तिथि की हानि होने पर द्वितीया को व्रत करने का विधान करते हैं । अनन्त व्रत का वर्णन करते हुए कृष्णसेन ने इसका वर्णन किया है । तात्पर्य यह है कि मूलसंघ के आचार्यों के मत में तृतीया तिथि के ह्रास होने पर अथवा तृतीया का घट्यादि प्रमाण छः घटो से अल्प होने पर द्वितीया को ही व्रत कर लेना चाहिए ।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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