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________________ व्रत कथा कोष -[ ५३ उदाहरण बुधवार को दिनमान २८ घटी ४० पल हैं। तथा इसी दिन चतुर्दशी तिथि ६ घटी ७ पल है । ऐसे में क्या उक्त तिथि बुधवार को पूर्वान्हव्यापी है । क्या इसे व्रत के लिए ग्रहण करना चाहिए ? .. दिनमान २८/४० में ५ का भाग देने पर भाग (२८/४० : ५ = ५/४४) ५/४४ पाता है, इसे २ से गुणा कर (५/४४ ४ २=११/२८) ११/२८ आता है । बुधवार को किसी तिथि के पूर्वान्ह का मान ११।२८ होना चाहिए तभी वह व्रत के ग्राह्य मानी जाएगी, किन्तु बुधवार को चतुर्दशी ६/७ है, अतः वह पूर्वान्ह-व्यापी न होने से व्रत के लिए ग्राह्य नहीं है । हिमाद्रि मत कर्नाटक प्रान्तीय श्रीधराचार्य के मत से मिलता-जुलता है, केवल गणित प्रक्रिया में थोड़ा-सा अन्तर है । गणित से प्राप्त फल दोनों का लगभग एक-सा ही है । दीपिकाकार एवं मदनरत्नकार सत्यव्रत ने उदय तिथि का खण्डन करते हुए बताया है कि जब तक पूर्वान्ह-काल में तिथि न हो तब तक व्रतारम्भ और व्रत-समाप्ति नहीं करनी चाहिए । देवल ने भी उक्त मत का समर्थन किया है तथा जो केवल उदय-तिथि को ही प्रमाण मानते हैं, उनका खण्डन किया है । देवल तथा सत्यव्रत का मत बहुत कुछ मूलसंघ के प्राचार्यों से समानता रखता है। तिथि-शक्ति और तिथि के बलाबल की प्रधानता को हेतु मानकर पूर्वान्ह-काल-व्यापी तिथि को व्रत के लिए ग्राह्य माना है । इन्होंने पूर्वान्ह का प्रमाण भी एक विलक्षण ढंग से निकाला है। इन्होंने दिनमान का पञ्चमांश हो पूर्वान्ह माना है। यद्यपि अन्य गणित के प्राचार्यों ने पञ्चमांश पर पूर्वान्ह काल का प्रारम्भ और दो पञ्चमांश पर पूर्वान्ह की समाप्ति मानी है । दिनमान का मान्य पञ्चमांश कह देने से ही पूर्वान्ह का ग्रहण हो जाता है। निष्कर्ष यह है कि अनेक मतमान्तरों के रहने पर भी जैनाचार्यों ने व्रत के लिए छह घटी से लेकर बारह घटी तक तिथि का प्रमाण बताया है । बशलक्षण और सोलहकारण व्रत के दिनों की अवधि का निर्धारण कारणे लक्षणे धर्म दिनानि दश षोडशात् । न्यूनाधिक-दिनानि स्पुराधन्त विधि संयुते ॥१८॥
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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