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________________ ५२ ] व्रत कथा कोष गणित के अनुसार पंचमांश से ज्यादा है । अतः गुरूवार को पंचमी का व्रत किया जाएगा । मुनिसुव्रत पुराण के कर्त्ता ने व्रत की तिथि का मान कुल तिथि का षष्ठांश स्वीकार किया है । दक्षिण भारत के कर्नाटक प्रान्त में पंचमांश प्रमाण तिथि, तमिल प्रान्त में षष्ठांश प्रमारण तिथि, तैलगु प्रान्त में त्रिमुहूर्तात्मिका तिथि व्रत के लिए ग्रहण की गई है । उत्तर भारत में सर्वत्र प्रायः रसघटी प्रमाण तिथि ही व्रत के लिए ग्राह्य मानी गई है । मूलसंघ और सेनगरण के आचार्य तिथि प्रभाव और तिथि-शक्ति की अपेक्षा छह घटी प्रमाण तिथि ही व्रत के लिये ग्रहण करते हैं । काशी, कोशल, मगध एवं अवन्ति श्रादि समस्त उत्तर भारत के प्रदेशों में मूलसंघ का हो मत तिथि के लिए ग्राह्य माना जाता है । काष्ठासंघ के प्रधान आचार्य जिनसेन है, इन्होंने व्रत की तिथि का प्रमाण तीन मुहूर्त प्रर्थात् ५ घटी ३६ पल बताया है । हस्तिनापुर, मथुरा और कोशल देश में प्राचीन काल में इस मत का प्रचार था । मूलसंघ और काष्ठासंघ के व्रततिथि प्रमाण में कोई विशेष अन्तर नहीं है; मात्र चौबीस पल का ही अन्तर है जो कि मध्यम और समन्वय करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है कि व्रत करने के लिये तिथि का मान छह घटी से ज्यादा होना चाहिये । सेनगरण के कतिपय आचार्यों ने इसी कारण व्रत को तिथि का मान तीन मुहूर्त से लेकर छह मुहूर्त तक बताया है । तीन मुहूर्त प्रमाण तिथि लेकर व्रत करने से जघन्य फल चार मुहूर्त प्रमाण तिथि में व्रत करने से मध्यम फल तथा छह मुहूर्त प्रमाण तिथि में व्रत करने से उत्तम फल मिलता है । तीन मुहूर्त से अल्प प्रमाण तिथि में व्रत करने से व्रत निष्फल होता है । निर्णयसिंधु में हेमाद्रि मत का वर्णन करते हुए बताया गया है कि विवाद होने पर तिथि का प्रमाण समस्त पूर्वान्ह व्यापी लेना चाहिये । पूर्वान्ह का प्रमाण गणित से निकालते हुए बताया हैं कि दिनमान में ५ का भाग देकर जो बन्ध प्रावे, उसे २ से गुणा करने पर पूर्वान्ह का मान श्राता है।
SR No.090544
Book TitleVrat Katha kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKunthusagar Maharaj
PublisherDigambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Ritual_text, Ritual, & Story
File Size21 MB
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