SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रन्ध में प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियों का परिचय मुनि श्री पुण्यविजय जी ने वीरस्तव अन्य के पाठ निर्धारण में निम्न हस्तलिखित प्रतियों का प्रयोग किया है (१) सं०-थी हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर पाटन की प्रति । यह प्रति संघवीपाड़ा जैन ज्ञान भण्डार की है, जो ताइपत्र पर लिखी (२) हं०-श्री आत्माराम जैन ज्ञान मन्दिर, बड़ौदा की प्रति । यह प्रति मुनि श्री हंसराज जी म. सा. के हस्तलिखित ग्रन्थसंग्रह की है। ((३० प्र०--श्री पूज्यपाद प्रवर्तक श्री कांतिविजय जी म. सा. के संग्रह की प्रति की कोई नकल है। (४) पु०-१-श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अहमदाबाद में सुरक्षित, यह प्रति मुनि श्री पुण्यविजय जी म. सा. के संग्रह की है। हमने उक्त क्रमांक १ से ४ तक की इन पाण्डुलिपियों के पाठ भेद मुनिपुण्पविजय जी द्वारा सम्पादित पइण्णय सुत्ताई' नामक ग्रन्य से लिये हैं। इन पाण्डुलिपियों की विशेष जानकारी के लिए हम पाठकों से 'पइयणय सुत्ताई' ग्रन्थ की प्रस्तावना के पृष्ठ २३-३० देखने की अनुशंसा करते हैं। ग्रन्थ के कर्ता एवं रचनाकाल-- प्रकीर्णक ग्रन्थों के रचयिताओं के सन्दर्भ में मात्र देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक के कर्ता ऋषिपालिस का उल्लेख मिलता है, इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी प्रकीर्णक के कर्ता का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त नहीं होता। हालांकि पइपणय सुत्ताइ भाग १ को प्रस्तावना में मुनि पुग्यविजय जी ने, प्राकृत साहित्य के इतिहास में जगदीश चन्द्र जी जैन ने , जैन १. पइण्णय सुसाई भाग १-प्रस्तावना १७-१८ । २. प्राकृत साहित्य का इतिहास-प० १२८
SR No.090540
Book TitleAgam 33 Prakirnak 10 Viratthao Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay, Sagarmal Jain
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size789 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy