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________________ पिकराविणः ॥ ५४४॥ षट्ऋतूनां फलान्येव कुसुमानि विशेषतः। आजग्मुर्युगपत्काले पीतरागप्रभाषतः ॥ ५४५ ॥ राजत्यप्सरसो वृदं वृ'दारफसमाधितं । मतत्पयोधरामोग देखा हैमवीरुधां ॥ ५४६ । मालाकारः समायातो याटिकायां चिलोकयन् । तदा ददर्शसंभृतां सर्वशोभा फलान्यितां ॥ ५४॥ किमेतदिति चित्ते स स्वकालकुसुमादिक व्यतर्कयचिर प्रांत्या नु माया मृगतृणिका ॥ ॥५५८॥ कियदरं ततो गत्वा यावत्पश्यति कौतुक । दध्वान दुदुभीरावः पुरयन् गगनांग॥ ५४॥ कियत्यपि पुनर्गत्या मार्ग शोमा लुलोक सः । देवदेवता त्रिशत्सहसूध्वजराजिता ॥ ५५० ॥ जयारवैविमानस्थभवद्भिर्मकृतीकृतां । सुरांगनामुखोदुनधि कृतदिङ्मुखां ॥ ५५ ॥ युग्म । एवं दृष्ट्वा निवृत्या नीत्या कुसुमसत्फलं । गत्या राशः पुरस्तात्स मुक्त्वा चान्सुसंभव ॥ ५५२ ॥ और कमलरूपी भूषणोंसेभूषित थीं। जो वक्ष सूखे पड़े थे वे लतापर्यत फल और फलोंसे नम्रीभूत हो गये। भौरे घूम घूम कर गुंजार शब्द करने लगे और उनपर बैठकर कोकिला मनोहर और मधुर आलाप आलापने लगीं समस्त ऋतुओंके फल और फलोंसे समस्त वृक्ष लदवदा गये ॥५४४k५४६॥ देवोंसे व्याप्त जैसी अप्सरायें शोभित होती हैं उसीप्रकार कमलोंसे व्याप्त वहांकी सरोवरी अत्यंत शोभायमान थी तथा विशाल स्तनोंसे कंपित जैसा अप्सराओंका समूह अत्यंतशोभायमान दीख पड़ता है वैसा ही सुवर्णमयी लताओंका समूह भी अत्यंत शोभायमान था।माली जिस समय वनमें आया 2 समस्त शोभा और फलोंसे युक्त जिससमय उसने वहांको जमीन देखी वह मन ही मन विचार करने लगा कि यह समय तो फूल आदिके मानेका नहीं है फिर ये जो फल आदि दीख रहे हैं यह क्या है ? k क्या यह इन्द्रजाल है या मृगतृष्णा है ? तथा इसप्रकार तर्क वितर्क करता जिससमय वह थोड़ी दूर और आगे बढ़ा तो क्या देखता है कि दुदुभि बाजेका उन्नत शब्द हो रहा है जिसने कि अपनी 1 गुंजारले समस्त आकाशरूपी आंगन पूर रक्खा था ॥ ५४७–५५० ॥ उससे भी आगे जब कुछ बढा तो वह मार्गमें महामनोहर शोभा निरखने लगा जो शोभा देवोंके देव इन्द्रो द्वारा की गई। थी। तीस हजार ध्वजाओंसे युक्त थी। विमानमें बैठनेवाले और झंकार करनेवाले देवोंके झंकारों 2 से परिपूर्ण थी एवं देवांगनाओंके मुखोंसे जायमान जय जय शब्दोंसे समस्त दिशाओंको बधिर करने वाली थी ॥५५१-५५२॥ बस भगवान महावीरके प्रभावसे होनेवाले दृश्यको देखकर एवं कुछ हपहपएयहाणYERY
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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