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विमल. ६१
पाव
मोत्या मंत्र' अजापाशु ध्यानासनोदयात् । मभयस्य महाविद्या सिषेधाचिरकालतः ॥ ५२१ ।। तत्प्रभावात् खगस्यापि विद्यासिद्धि रमसरां । तयोस्तदा सुमित्रत्वाचान्योन्य नेमतुस्तरां ॥ ५२२ ।। मृगाक्षों-ज्यपुत्रादिविद्याराज्ययशांसि च । स्वर्गमोक्षसुखान्येव भवत्यदतपुण्यतः॥ ५२३ ॥ गत्वागारेऽभयो धीमांचक मेघ बलान्वितं । राश्याशां पूरयित्वा स घोजिड़न्मंदिरस्य तां ॥५४॥ कियत्यपि गते काले राशी पुत्रमजीजनत् । होइदकानुसारेण नाम्ना मेघकुमारकं ।। ५२५ । श्रेणिकस्य सुतो धीमानभयाख्यो विचक्षणः । बुद्धया गुरुरियो तो देघराजय लीलया ॥ ५२६ ॥ पूरमलापतिः कृष्ण इवाईवरणप्रियः । मंगलो बा महाप्राज्ञो धेर्यगांभीर्यगौरवः ।। | ५२७॥ पट्टराध्याः सुताः सप्त वभुवुः सप्त सागराः । गंभीरा इच सद्बुद्धिगरगाः परमोदयाः ॥५२८॥ एवं पुत्रादिसत्सौख्यलीलया देवरा
दिया । दृढ ध्यान और दृढ आसन माढकर कुमार अभय बैठ गये और मन्त्र जपने लगे। पुण्यकी प्रबलतासे थोड़ी ही देरमें उन्हें महाविद्या सिद्ध हो गई। उनके प्रभावसे विद्याधर वायुवेगको भी विद्यासिद्ध हो गई। दोनों आपसमें मित्र हुए और प्रेमपूर्वक दोनोंने आपसमें नमस्कार किया। ठीक ही है पुण्यके उदयसे संसारमें स्त्री द्रव्य पुत्र विद्या राज्य यश स्वर्ग और मोक्षके सुख सभी
कुछ प्राप्त होते हैं ॥ ५१६-५२३ ॥ मन्त्र सिद्धकर कुमार अभय घर लौट आये । विद्यारलसे kdमेधकी रचना की उसमें रानीको घुमाकर उसकी आशा पूरी की। एवं घुमा फिराकर उसे राजमन्दिर
में लौटा लाये। कुछ दिनवाद रानी चेलिनीके पुत्र हुआ और दोहलेके अनुसार उसका नाम मेघ कुमार रक्खा गया ॥५२४-५२५॥ महाराज श्रेणिकका पुत्र कुमार अभय बड़ा भारी बुद्धिमान ।
और चतुर था। बुद्धि में वृहस्पतिके समान था और इन्द्रसरीखी लीला करनेवाला था ॥ ५२६।। तथा वह पूरमल्लाके खामीमुझकृष्णदासके समान भगवान अर्हतके चरणोंका प्रेमोथा।मेरे छटे भाइ मंगलदासवा मंगल ताराके समान महा विद्वान एवं धीरता गंभीरता और गौरवका खजाना था ॥५२७॥ महाराणी चेलिनीके सात पुत्र थे जो कि साक्षात् सात समुद्रथे।महागंभीर थे। उत्तम वुद्धिके पारगामी थे और परम उपमाके धारक थे। शेष नागके समान पराक्रमी राजा श्रेणिक उत्तम पुत्र दिव्य सुख |