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________________ नल ८. SPERSYAS AYAYAYA ३०४ ॥ राज्ञया कृतं नृपः श्रुत्वाद्वात्रिपनन । इदं कर्म न कर्तव्यं त्वया निद्य च दुःखदं ॥ ३०५ ॥ चेयं धर्मवती जैनी पापालनपंडिता: । ज्वालयेस्त्य' कथं जीवान करभो ! विधारय ॥ ३०६ ॥ तदा स्मित्याऽवददाशी शृणु गंभीरशासन ! मयेत्यवगतं मोक्षं गताः संति प्रबोधकाः ॥ ३०७ ॥ कलेवरान् यद्देष्यति तदा संसारवर्तिनः । संसारं वर्तते दुःखं यतो ज्वालयितं गृहं ॥ ३०८ ॥ ( युग्मं एतस्योपरि वृततिं गदामि शृणु भूपते ! वहस देशेऽस्ति विख्याता कौशांबी नगरी शुभा ॥ ३०६ ॥ वसुपालोऽस्ति तद्राजा भामिनी। rist देखते ही वे समस्त साधु मठ छोड़कर एकदम भाग गये। रानी चेलिनीके इस कृत्यका पता महाराज को लग गया वे शीघ्र रानीके पास आये और इसप्रकार उससे कहने लगे रानी ! साधु में जो तूज आग लगाई है यह बड़ा ही निंदनीक और दुःखदायी कार्य किया है ऐसा निंदनीक और दुःखदायी कार्य तुझे नहीं करना चाहिये । तुतो जैनधर्मकी पालन करने वाली और दया करनेमें पंडिता समझी जाती है जरा बता तो सही तुने मठको जलाकर जीवों विध्वंस करनेका कार्य कैसे कर डाला ? महाराजके ये वचन सुन मुस्कराकर रानीचे लिनी ने कहा नरनायक प्राणनाथ ! एक मनुष्यके कहे अनुसार मैंने यह समझा था कि ये समस्त साधुगण मोज में चले गए हैं। तथा यह निश्चित बात है कि जबतक शरीरोंके अन्दर लालसा रहती है तब तक संसारमें घूमना पड़ता है और संसार में अनेक प्रकारके दुःख भोगने पड़ते हैं । उनका यह समस्त दुःख नष्ट हो जाय इस आशासे मैंने उनके मठमें आग लगवा दी थी। मैं इसो विषय को लेकर एक कथा सुनाती हूँ आप ध्यान पूर्वक सुनें- वत्सदेशमें एक कौशांबी नामकी नगरी है जो कि पृथिवीपर प्रसिद्ध और शुभ है। किसी समय उसका पालन करने वाला राजा वसुपाल था और उसकी रानीका नाम यशखिनी था जिस की कि कीर्त्ति अनुपम गुणोंसे सर्वत्र व्याप्त थी एवं वह संसार में प्रसिद्ध और हरिणीके समान मनोहर नेत्रवाली थी ॥ ३०२ - ३०६ ॥ उस नगरीमें एक सागरदत्त नामका सेठ भी रहता था अपपपप PYAAY
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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