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तदा निमय बौद्धोघानुपा.योगा या पिता गीता व गत वसं इठादिति ॥ ३०१॥ बौद्धसंघात्ततः श्रुत्वा राज्ञोपालं. भिता च सा । शृणु राशि! महाधर्मादयो धर्मो न विद्यते ॥ ३०॥ सतो जगाद सा मामा परीक्ष्य ध्यानसंस्थितान् । क्षणिकत्वाद्गुरून
बौद्धान् करिष्ये तावक वृष ॥ ३०३ ॥ अन्यदा सा गता तेषां ध्यानकाले कलाविता | सख्या संज्वालयामास तद्गृहं तैः पलायित । 14 कहा कि बौद्धगुरु तो सर्वज्ञ हैं वे अपने दिव्य ज्ञानसे समझें कि उनके जूते कहां है ? रानीके ये
वचन सुन बौद्धगुरु अवाक रह गये। मक मार उन्हें यही कहना पड़ा कि हमारा ज्ञान ऐसा नहीं | जो यह बात जान सके। थोड़ी देर वाद निकृष्ट छाछ खानेके कारण उन्हें वमि हो गई । वमिमें जूतोंके छिलके निकले इसलिये वे बड़े लज्जित हुए और चुप चाप अपने मठोंको चले गय॥३०१॥
रानीने बौद्धगुरुओंका जो अपमान किया था सारा महाराजसे जाकर सुनाया गया। अपने गुरुओं A की यह अवज्ञा सुन उन्हें भी बड़ा क्रोध आया वे रानीके पास आये और उलहनोंके साथ उल्टी 9 सीधी सुना कर यही कहने लगे देखो रानी! बौद्धधर्मही महाधर्म है उससे भिन्न अन्य कोई भी का KI संसारके अन्दर उत्तम धर्म नहीं। तुम्हें उसकी इसरूपसे अवज्ञा नहीं करनी चाहिये । महा
राजको कुपित देख रानी विशेष कुछ न कह कर यही कहने लगी-महाराज! यदि आप बौद्धधर्मको ही सर्व श्रेष्ठ धर्म मानते हैं तो अच्छी बात है 'चणिक धर्मके अनुयायी बौद्ध गुरु जिससमय ध्यानमें लीन होंगे उस समय मैं उनकी परीक्षाकर आपका धर्म धारण करूंगी आप | विश्वास रक्खें। A. एक दिन जब कि समस्त बौद्धसाधु ध्यानमें लीन थे उस समय रानी चलनी उनके मठमें 2
गई । पासमें खड़े रहने वाले किसी मनुष्यसे यह सुनकर कि “यद्यपि इन साधुओंके शरीर यहां पड़े। 8. दीखते हैं परंतु इनकी मात्मा ध्यानके योगसे इससमय सिद्धालयमें विराजमान है" उनकी असलो
परीक्षा करनेके लिये रानीने सखीके हादसे मठमें भाग लगवादी । ढोंग कबतक चल सकता है ?
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