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________________ जिनमत्यमिधागारे थोपयम्य सुख लिनः२८७ ॥ अथकदा नपस्यैवं दृष्ट्वाऽवारविवर्जितं । धर्म बौद्धमय मिते सरोद गद्गदस्वरा adm२८८ ॥ पंडितैरमपनं घंचिता मारमदिता । किंकरोग्यधुना धर्माद्विना ध्यर्थ हि जीवितं ।। २८६॥ नो भुनक्ति न बक्ति सा कृशोभूयमलमुपागताधा पाना शकणाम्य दुर्वलासि भो ॥ २६७ ॥ चेलिनी प्राह हे नाथ ! कुस्त्याने पतिनास्यहं । जैनधर्म विहा. तान्यो धर्मो नेवास्ति भूतले ॥ २१ ॥ त्वदुगृहेऽहं समायाता गंगामश्च श्वचर्मणि । मूर्तिश्च वैधवी राहो पतन्द्र षु सुश्रुतिः ॥ २६२ ॥ पुरको ओर चल दिये ॥ २८२-२८६ ॥ चलिनीके साथ कुमार अभयका आना सुन महाराज श्रेणिक अनेक सामंतोंसे वेष्टित हो उनके सन्मुख आये । जिनमतो नाम के मंदिरमें च लिनोके - साथ उनका पाणिग्रहण हो गया जिससे वे सुख पूर्वक रहने लग ॥ २८७॥ ___ एक दिन महाराणी चोलिनी गृहस्थों के आचारसे रहित बौद्धधर्मको आचरण करते महाराज श्रेणिकको देखकर चित्तमें बड़ी दुःखित हुई एवं गदगद स्वरसे इसप्रकार रोने लगी-हा काम ! की व्यथासे पीडित मुझे चतुर अभय कुमारने ठग लिया । बातोंमें फुसलाकर विधर्मी राजा के साथ मेरा विवाह करा दिया । धर्मकी यहां कुछ भी मर्यादा नहीं सूझ पड़ती इसलिये मैं इस समय क्या करू? क्योंकि विना धर्म के जीवन विफल है ॥ २८८-२८६ ॥ बस अत्यंत दुःखित हो उसने खाना बोलना सब छोड़ दिया जिससे वह एकदम दुर्बल हो गई। उसको ऐसी दुःखदायी अवस्था देख महाराज श्रेणिकने पूछा-- प्रिये ! क्या कारण है जो तुम दिनों दिन दुर्वल होती चली जाती हो ? उत्तरमें चलनीने कहा—प्राणनाथ ! मेरा विवाह तोहुआ परंतु मैं निकृष्ट - स्थानमें लाकर डाल दी गई क्योंकि सिवाय जैनधर्मके संसारमें अन्य कोई भी धर्म नहीं सब धर्माभास हैं । राजन् ! जिसप्रकार महानिकृष्ट कुत्तके चमड़ेमें गंगाजल सरीखा पवित्र जल भर दिया जाता है,कौंन पदार्थ कैप्ता है ? तनिक भी विचार नहीं किया जाता उसोप्रकार कुत्ते के चाम के समान आपके घरमें में गंगाजल सरीखी आगई है तथा जिसप्रकार राहु के विद्यमान रहते भा WITYपपपपाय kamarthEKKERAY Or Karki
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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