________________
मलजपथा वे रोचते नुस्य करिष्यामि तथाह || म ॥ श्रुत्वाऽभययो राजा राणेति सुतं प्रति । हे सन् ! देहज ? सोऽप्यस्ति जैन२ :धर्मेण रेजितः ॥ २७६ ।। अतो दास्यति मो महा बौद्धधर्माय केवल । ततोऽब्रवीत्सुतो धीर: करिष्येऽहमुपायकं ॥ २७७ ॥ सार्थवाहा
धियो भूत्वा जेनधर्मधुरंधरः। जनलोकः सम शुमो विशालायां ययौ मिषात् ॥ २७८ ॥ सरनं प्राभृतं नीत्वा मिलितं सेटफस्य
स:। सामान्य चेटको भूपो व्याजहार गिरं बरं ॥२७॥. स्थीयतामत्र पुर्या' भो भवद्भिः परमार्थिभिः। अस्माकं बलभा जैना | मित्राणि धनवांधवाः ॥ २८० ॥ अत्याग्रह मपस्यैव मत्वा मंदिरसन्नधौ । गृहं संप्रार्थयामास तत्र संस्थितांस्तदा ॥ २८१ ॥ एकदा
रुचेगी में उसे पूरी करदगा । कुमार अभयके ये वचन सुन पुनः महाराजने कहा-प्यारे पुत्र ! तुम 2 अवश्य बुद्धिमान हो और हरएक कार्य कर सकते हो परंतु तुम्हारे लिये यह कार्य करना कठिन होगा क्योंकि राजा चेटक जैनधर्मका भक्त है और में बौद्ध धर्मका सेवक हूँ इसलिये विधर्मी जान मुझे वह अपनी कन्या न दे सकेगा। धीर वीर कुमारने उत्तर दिया आप चिंता न कीजिये जिस रूपसे बनेगा में चलनीकी प्राप्तिका ठीक उपाय करूंगा ॥२७३--२७७॥ वस परम जिनधर्मी उस कुमारने क्या काम किया कि अनेक व्यापारियोंका स्वामी बन और कुछ जैनलोगोंको साथ लेकर छलसे विशाला पुरीमें जा पहं चा । रत्नमयी भैंट लेकर वह राजा चटकसे मिला। राजा चटकने भी कुमारका पूर्ण सन्मान किया एवं इसप्रकार मनोहर वचनोंमें बात चीत की___ आप महानुभाव मोक्षप्राप्तिके अभिलाषी धर्मात्मा है। मेरी इस पुरीमें आप ठहरें क्योंकि जो महानुभाव जैनी हैं। जैनधर्मका पालन करते हैं वे हमारे प्राणोंसे भी अधिक प्रिय हैं। मित्र हैं| और धन एवं बांधव भी वे ही हैं। कुमार अभय अत्यंत चतुर व्यक्ति थे राजा चं टकका जब उन्होंने यह आग्रह देखा तो उन्होंने राजमहलके पासही ठहरनेके लिये मकान लेनेकी प्रार्थना की ।।
राजा चटकने धर्मात्मा जान उनकी प्रार्थना स्वीकार करली एवं वे सानंद वहां ठहर गये॥२७८-२८१॥ Lid एक दिन कुमार अभय अपने साथियोंके साथ उत्साह पूर्वक बड़े उच्चस्तरसे भगवान जिनेंद्रकी
पपपपपपपपपपपपर
PHYYYorkhetkariThak