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प्रकप
विशालायां चेटकस्य सुभद्रिका । तत्पुत्री चेलिनी नाम्ना निम्ननाभिः शोवरी। २७०। प्रौद्योलतनितंबा च बिम्यष्टो मार जिनी । विशालामा बनवती ॥इत्यादिवर्णनोपेतां श्रुत्वा श्रेणिक भूपतिः । चिंतकामास चित्तस्थे चित्रं शल्या
यते नणां ।। २७२ ।। समायातस्तदा तत्र सभायामभयायः । हृष्ट्वा तातं सदु:खं च तकरूपय घेगतः ।। २७३ | मनोगतं तदा - राक्षा प्रोक्त च दुस्तर वचः । श्रुत्वाभयकुमारो वि प्राचोचनरनायक ॥ २६४ ॥ शृणु नाथ ! पाधार ! मा चित : कुरु सर्वथा । IPC होनेपर उन्होंने भरतसे पूछा-कहो भाई। चित्र में अक्षित यह मनोहर रूप किसका हैं ? महाराजPr को अपने अनुकूल समझ भरतने बड़े आदरसे कहा--राजन ! आप सुनिये में समस्त वृत्तांत कहता हूँ
सिंधुदेशकी विशाला नगरीके स्वामी राजा चेटक हैं उनकी पटरानीका नाम सुभद्रा है उससे उत्पन्न एक चेलिनी नामकी कन्या है जो कि गंभीर नाभिकी धारक है । कृशोदरी है प्रौढ़ और | उन्नत नितंबवाली है। वियाफलके समान ओष्ठवाली, कामदेवके आनंदकी भूमि, विशाल हृदयको |
धारण करनेवाली चन्द्रमुखी एवं साक्षात् सरस्वती सरीखी है उसीका चित्र यह आपके सामने विद्यमान है। चित्रकार भरतसे इस दिव्य वर्णन युक्त कन्याको सुनकर महाराज श्रेणिक मन ही मन
गहरी चिंतामें लीन हो गये । ठीक ही है चित्र भी मनुष्योंको शल्य ( कील ) के समान दुःख देता ISहे अर्थात् कीलके गढ़ जानेपर जिसप्रकार गहरी वेदनाका अनुभव होता है उसीप्रकार चित्र भी
हृदयमें चुभ जानेपर विशेष दुःख भुगाता है ॥ २६६-२७२ ॥ जिस समय महाराज चिंतामें लीन जिथे उसी समय कुमार अभय राज सभामें आये एवं अपने पूज्य पिता महाराजको दुःखित और 4
चिंतित देख जल्दी उस दुःख और चिंताका कारण पूछने लगे--महाराजके मनमें जो बात थी| उन्होंने कह दी एवं यह भी कहा कि यह बात होनी कठिन है। धीर वीर कुमार अभवने नरोत्तम महाराजको उत्तर दिया--दयालु पिता! तुम्हें तनिक भी चिंता न करनी चाहिये जो बात आपको.
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