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ऋषAJANIYA
॥ ३८॥ संधायाशुगतिं यावयोमागे अलोवली। क्षितुमिच्छति तावत्स गृहोतो रामया करे ॥ ३६॥ श्रयता मारक नाथ! वचः परमपावन अधिमृश्य पिधेयं न कृत्य सभ्येन धीमता व स्वकीय घलमज्ञाय ये कुर्वन्नि यशठात वष निधनं यांति स्वाहानार्थ पतंगवन् ॥४१॥ येनादः स्तंभित व्योमयानं महतवैव सः । स्याङ्कली तहि दुःखोन जीयते फणिने वोट ॥ ४२ ॥ पड़ा नो जीयते शत्रु सहा कार्तिःप्रयश्यति । तस्यां धिरजावित नणी गतायां गततेजसा ॥४३॥ नाभिश्चत्वारि कृत्यानि नो विधयानि गत विमृश्यकारिणं गाधं वृणाते यजपाधिमा ४५ भामायास्तवः श्रुत्वा विद्वद्विवंचं हितं । अगौ मा नभाभागो काता कामग्रियोपमा
प्राणनाथ ! मेरे हितकारी वचन सुनिये जो मनुष्य सभ्य और बुद्धिमान हैं उन्हें विना विचारे C] कोई भी कार्य नहीं करना चाहिये ॥ ४७-४१॥ जो मनुष्य अपनी शक्तिको न जानकर विना
विचारे ही बल कर बैठते हैं वे मूर्ख कहलाते हैं एवं अग्निमें गिरकर जिल प्रकार पतंग खाख हो । जाता है उसी प्रकार वे भी मृत्युके कयल बन जाते हैं ॥ ४२ ॥ स्वामिन् ! जरा विचारो तो जिसने तुम्हारा यह विमान रोक दिया है वह यदि तुमसे अधिक वलवान हो तो जिस प्रकार सर्पसे ।
गरुड़का जीता जोना कठिन है उस प्रकार तुमसे उसका जीतना कठिन हो जायगा ॥४३॥ यदि 195तुम शत्रुको न जीत सकोगे तो तुम्हारी कीर्ति नष्ट हो जायगी। कीर्तिके नष्ट हो जानेसे मनुष्य ।।
तेज रोहत हो जाता है फिर उसका जीवन ही विफल माना जाता है ॥४४॥ बुद्धिमान मनुष्यों । * को चाहिये कि वे चार वातोंके करने में जल्दी न करें विचार पूर्वक ही हर एक कार्यको करें क्योंकि 5. जो पुरुष विचार शील हैं लदमी उन्हें आपसे आप भाकर वर लेती है ॥ ४५ ॥ विद्वानोंसे भी KC जल्दी नहीं कहे जानेवाले एवं हितकारी अपने स्त्रीके बचन सुन विद्याधर विद्युन्मालीने कहा
___रतिके समान परम सुन्दरी भ्रमरोंकी पंक्तिके समान काले कटाक्षोंसे शोभायमान भृग लोचनी प्रिये! तुमने कहा है कि विद्वानोंको चार कार्य जल्दी नहीं करने चाहिये तो वे चार कार्य कौन है
NAYAYANAYA NAYA
MEREKINERAL