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________________ YYAYA%A PAKKA | १८ || अयोध्यास्ते परीरस्था परिखादुर्गवेष्टिता । श्रीवर्मा तत्र राजाऽभूत्सुलीमा तस्य भामिनी ॥ ११ ॥ श्वभ्राद्विभीषणः प्रति निर्गत्याभूत्तयोः सुतः । सुधर्माखया गुणाम्यधिर्मामितीयोगचचुरः ॥ २० ॥ एकदाऽनंतयोगात् शुत्वा धर्म त्रिरतधोः । तत्पार्श्वे संयमं नीटश पगारादेषेश्वुत्रस्त रम्माण सुखमन्वभूत् । गतं कालं न जानाति गीतनाट्यरसैरी ॥ २२ ॥ सर्वार्थसिद्विजोदेवो वज्रायुधधरस्ततः । च्युतवाभूरसंज्ञयंताख्यो बलीयान् योगरोधकः || २३ || स ब्रह्मशोऽपि तत्रत्यं सुखं भुक्त्वायुषः क्षये । च्युत्वा जयंतनामाभूत् संजयंतानुजः सुधीः ॥ २४ ॥ निदानेन मृतः सोऽपि त्वं फणीशोऽभवन्महान् । मोहाद्विलुप्त महा शोभायमान जान पड़ती है। अयोध्यापुरीका स्वामी उस समय श्री धर्मा था और उसकी रानीका नाम सुशीला था । १७ - २० ॥ नारायण विभीषणका जीव नारकी अपनी युके अन्तमें नरक से निकला एवं राजा श्रीधर्माके रानी सुसीमासे उत्पन्न सुधर्म नामका पुत्र हुआ जो कि अनेक गुणोंका समुद्र था और स्त्रियोंके भोगोंमें प्रेम रखनेवाला था ॥ २१ ॥ एक दिन मुनिराज अनंतसे उसने धर्मका स्वरूप सुना जिससे उसे संसारसे बैराग्य होगया । शीघ्र ही उसने मुनिराज अनंत के पासमें संयम धारणकर लिया। घोर तप तपा जिससे तपके प्रभावसे वह ब्रह्म स्वर्ग में उत्तम ऋद्धि का धारक देव होगया ॥ २२ ॥ बहांपर पुण्यके उदयमे उसे सब सामग्री प्राप्त हुई वह देवांगनाओं के साथ आलिंगन चुम्वन आदि क्रियाओं में एवं उत्तमोत्तम गायन और नाटकोंके देखने में इतना भग्न होने लगा कि उसे यह मो नही जान पड़ने लगा कि उसकी आयुके दिन वहां बीत रहे हैं । ॥ २३ ॥ राजा बज्रायुथका जीव अहमिन्द्र जो सर्वार्थ सिद्धि विमान में जाकर देव हुआ था वह अपनी आयु अन्तमें वहांसे चया एवं महाशक्तिका धारक और योगोंका निरोध करनेवाला संजयंत नामका महापुरुष हुआ जो कि तुम्हारा भाई था। मेरे भाई नारायण स्वयंभूका जीव जो ब्रह्म स्वर्ग में जाकर देव हुआ था उसने वहांके बहुत काल पर्यंत दिव्य सुख भोगे । श्रयुके अन्त में वहांसे चया नेत्रः
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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