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________________ %3D हि तत्त्ववित् ॥ १३८॥ सदयोऽलीलपद्धयानी तामेवावधिलोचनः । पुत्रि! मौन धेहि लेखावासशिवप्रद ।।१३६॥ तत्कथ' क्रियते ध्यानिन् ! कस्मिन् मास्यस्य को विधिः । कथ्यते वण सानन्दाद्विधि मौनवयस्य च ।। १४० ।। भोजने वमने स्न,ने मैथने मलमोचने नित्यमेतेषु कुर्यास्त्व मीनं पुत्रि स्वसिद्धये ॥१४|| नैमित्तिक धुनों षं कर्तव्य' शृणु तद्विधि। पोपे मास्यसिते पक्षे ध्रव कादशोदिन - ॥ १४२ ॥ आयामघोडशान्मौनसंयुतः प्रौषधः परः । ष तैव्यस्तहिने पुत्रि! वस्तसंशादिवर्जनं ॥ १४३ ।। हुङ्कारो न विधातव्यो मुखसंज्ञा तथैव च । कासः रहस्यारवो दुहु दन्तयन जबरनं ॥ १४॥ हसनं दृष्टिविक्षेपः शरीरस्य विधुननं । शयनं नैष कुन्त दिवानक्त' जिनालये । ६४५ ॥ सुकर' प्रतमेतत्ते काव्यं कर्महानये । प्रमाणीकृत्य सा नीस्वा व्रत याता निजास्पद ॥१५६ विधिना तदतं कृत्वा पशबEKYAarta पछा-प्रभो ! मौन ब्रत कैसे और किस मासमें किया जाता है और उसके करनेकी क्या विधि है ! कृपाकर आप बतलाइये उत्तरमें मुनिराजने कहा-नित्य और नैमित्तिकके भेदसे मौनत्रत दो एक प्रकारका है। तुम सुनो हम उसका स्वरूप वर्णन करते हैं पुत्री ! अपने आत्माकी विशुद्धिके लिये तुझे भोजन वमि स्नान मैथुन और मलमोचनमें | सदा मौन व्रत धारण करना चाहिये यह नित्य मौन व्रत है। तथा पूस मासको वदी एकादशीके व दिन खासकर तुझे मौन धारण करना चाहिये यह नैमित्तिक मौन व्रत है। नैमित्तिक मौनव्रतकी विधि इस प्रकार है पूस बदी एकादशीके दिन सोलह प्रहर पर्यन्त मौन सहित तुम्हें प्रोषध व्रत करना चाहिये । उस दिन मौन व्रतके समय तुम्हें हाथसे किसी प्रकारका इशारा न करना होगा । हुङ्कार । भी न करना होगा । मुखसे भी किसी प्रकारका इशारा न करना होगा । खासी खखारका शब्द हुँहू शब्द दांत मोचकर बोलना हंसना आंखोंसे इशारा करना शरीरका कपाना और जिनालयके अंदर बैठकर दिनरात सोना भी न होगा। पुत्री ! यह व्रत अत्यंत सरल है। तुझे अपने कमों के hamamam -
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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