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नाम्ना बनायुधः सुधीः ।। ६७ ।। पृथियोतिलकं माम्नः पतन सिलको भुवः । राज नररत्नाढ्य सोत्सवं चयमंडितं ।। ६८ 1 अतिवेग महोपालस्तलाभूद्वाजलक्षणः। प्रियकारुणिका तस्य बभूवेवामरप्रिया ॥६६॥ कापिष्ठात् श्रीधराजीवश्च्युत्यासो रुखकामियः । सता भत्तयोरस्या रत्नमालानिधा शुभा || एकदा तां पिता दृष्ट्वा यौवनश्रीचिराजितां । बजायुधकुमाराय दो भानुप्रियामिव !!
। वनायुप्रस्तयामेव रेमे रात्रिदिवं सुन्न । रम्भापो रम्मयाहीशः पद्मया तमसोड पः ॥ ७२ ॥ यशोधरापि कापिष्टाच्च्युत्या रत्नायुध भी अपनी आयुके अन्तमें कापिष्ठ स्वर्गसे चया और राजा चक्रायुधको चित्रमाला नामको रानीले बनायुध नामका गुम होगया ।। ६७ ।। 2 इसी पृथ्वी पर एक पृथिवी तिलक नामका नगर है जो कि अपनी शोभासे साक्षात् पृथिवीका तिलक स्वरूप जान पड़ता है। सदा वह उत्तमोत्तम पुरुष रलोंसे भरा रहता है और उसके चैत्यालय और मन्दिर सदा अनेक उत्सवोंसे जग मगाते रहते हैं ॥ ६८ ॥ पृथिवी तिलक पुरका स्वामी राजा अतिवल था जो कि समस्त राज लक्षणोंसे शोभायमान था। उसकी रानीका नाम प्रिय
कारिणो था जो कि अपनी अनुपम शोभासे देवांगना सरीखी जान पड़ती थो॥६६॥ श्रीधरा IM नामक आर्यिकाका जोत्र रुचक देव कापिष्ठ स्वर्गसे चया और रानी प्रिय कारिणीके गर्भ में अद
तोण हो कन्या होगया जिसका कि नाम रल माला था ॥ ७० ॥ एक दिन गजा अतिबंगने पूर्ण - यौनसे शोभायमान राजपुत्री रत्नमालाको देखा । उसे विवाहके योग्य समझकर कुमार बजायधन PO को प्रदान करदी एवं सूर्यको जिस प्रकार अपनी स्त्री प्यारी है उसी प्रकार यह रत्नमाला कुमार - बजायुध की परम प्यारी बन गई ।। ७१ ॥ जिस प्रकार रंभाका स्वामी रंभाके साथ रमण करता है
नागेन्द्र लक्ष्मोके साथ और चन्द्रमा रोहिणीके साथ रमण करता है उसी प्रकार कुमार वजायुध भी सुन्दरी रस्लमालाके साथ रात दिन रमण करने लगा और भोग जन्य सुख भोगने लगा ॥ ७ ॥
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