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________________ 続絶剤を続 | पूर्णचन्द्रानना स्थूलनितंबा नाम कोदरी ॥ २७॥ भुजानयोस्तयोः सौख्यं वैडूर्याधिपतिस्तः । चदुषा पुत्रो बभूवेति ख्याता नाम्ना यो धरा ॥ २८ ॥ नवयौवनसंपन्ना मध्यक्षामा विशालदृक् । विततोरोनिताभ्यां मंथरा पानना ॥ २६ ॥ भार रायपुरं देवपुराभं दर्तते महत्। सूर्यावर्ताभिटी राम्रा तमासोत्रमरसुन्दरः ॥ ३० ॥ पितृभ्यां यौवनशाम्यां तस्मै दत्तायशोधरा । सोऽपि रेमे तथा साकं रोहिण्येव पलानिधिः ॥ ३१ ॥ गर्भे श्रीधर देवोऽय भुत्वा नांकसुखं ततः । व्युत्वा तयोः सुतोजक्ष रश्मिवेगाधिपः सुधीः ॥ ३२ ॥ कदा faare meiपुरोके स्वामी राजा दर्शकके साथ कर दिया || २१|| राजा दर्शक और रानी श्रीरा दोनोंही सानन्द विष खाँका अनुभव करने लगे । राजा पूर्णचन्द्रका जीव वैंडर्य देव वहांसे या | रानी श्रीधराके गर्भ में आकर यशोधरा नामकी पुत्री हुआ । जो पुत्री खिलते हुए नवीन tarसे शोभायमान थी । पतली कटिकी धारक थी। उसके दोनों नेत्र विशाल थे । विशाल स्तन और नितम्बोंके कारण वह मंद मंद रूपसे गमन करनेवाली थी और चन्द्रमाके समान अतिशय शोभायमान थी ॥ २८- २६६ ॥ इसी पृथ्वी पर एक भास्कर नामका पुर है जो कि अपनी अद्वितीय शोभासे स्वर्गपुरकी समा नता धारण करता है । उस भास्कर पुरका रक्षण करनेवाला उस ममय राजा सूर्यावर्त्त था जो कि कामदेव के समान पदम सुन्दर था ॥ ३० ॥ जिससमय कन्या यशोधराके पिताको यह ज्ञात हो चुका कि कन्या यशोधरा पूर्ण युवती होगई है तो उन्होंने उसका विवाह राजा सूर्यावर्त के साथ कर दिया एवं राजा सूर्यावर्त भी जिस प्रकार चन्द्रमा रोहिणी के साथ रमण क्रीडा करता है उसी प्रकार युवती यशोधराके साथ मनमानी रमण क्रीडा करने लगा ॥ ३१ ॥ राजा सिंहसेनका जीव वह श्रीधर देव स्वर्गी अनुपम सुख भोगकर वहांसे श्रायुके अन्तमें चया और रानी यशोधराके अवती हो रश्मिवेग नामका पुत्र होगया ॥ ३२ ॥ एक दिन राजा सूर्यावर्तको मुनिचन्द्र KALYANK प्रथमेश
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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