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________________ NEYESH पल्यंयास्य रतिप्रेमा राजराजाधिकामः॥६॥शुकिजानां विधायाशु हार चेतोहरं निजे । पाससंजोरखि प्रीत्या संसारस्येद्गशी गतिः। ॥ ७॥ अतो मातमधे तीष को विदध्या इसीच्छया । धनं घन्यं सुतस्यादि कस्याभूद्र तले १५ ॥ ८ ॥ बल्लभः कस्यचित्कोऽपि मस्जि स्वागढगे सारे जन्मनाशादिदुःखदः॥॥ उपत्वयं संसृतेर्भाध योषमाश्रितवान्मुनिः। रामदत्तापि सच्चरचा विधावैराग्य संगता॥१०॥ जगामानुजपुत्रस्य प्रतिवोधाय वेगतः । स्नेहतस्तत्र गत्वाश योध्यारास तं सुसं ॥ ११॥ नाना सदैर्यदा सोऽपि प्रतिबोधं हि नागतः । तदास्य मुनिना प्रोका कयां सा सम्चीकथत् ॥ १२ ॥ वृत्ति', श्रुत्वा भवोचता भव्यत्वाम्प के तो पलङ्गके चार पाये वनवालिये और गजमोतियोंका महामनोहर हार बनवालिया जोकि प्रीति पर्वक अपने गलेमें पहिना ठीक ही है सारकी यही दशा है ॥६-७॥ माता तुम्हीं कहो संसार की यह भयंकर दशा देख कौन बुद्धिमान इसमें सन्तोष धारण कर सकता है। एवं धन धान्य पुत्र स्त्री आदि किसके संसारमें हुए हैं ! तुम निश्चय समझो विना स्वार्थके कोई भी किसीसे संसारमें प्रम करना नहीं चाहता क्योंकि यह संसार असार है और जन्म मृत्यु आदि दुखोंका देनेवाला है।-६॥ मुनिराज सिंहसेन सवोंकी पूर्वभवावलि सुनाकर चुप होगये आर्यिका रामदत्ता भी | उसे सुनकर मन वचन कायसे एकदम विरक्त हो गई ॥ १० ॥ मोहसे मोहित हो आर्यिका राम- | दत्ता अपने छोटे पुत्र पूर्णचन्द्रके प्रतिबोधने के लिये शीघ्र ही सिंहपुरकी ओर चल दी और राजा पूर्णचन्द्रको अन्रेक प्रकारसे प्रतिबोधने लगी परन्तु राजा पर्णचन्द्र संसारमें एकदम लिप्त था इस लिये आर्थिक रामदत्ताके वचनोंका उसपर रंचमात्र भी असर नहीं पड़ा । जय आर्यिका रामदत्ता ने यह समझ लिया कि। यह किसी प्रकारसे प्रतिवुद्ध होना नहीं चाहता तब उसने जो मुनिराज सिंहचन्द्रने राजा पूर्णचन्द्रके पूर्व भवका बृतांत कहा था कह सुनाया ॥ ११-१२॥ राजा पूर्ण चन्द्र भी भव्य पुरुष WAR
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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