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यन्तु सुभावतः । १९६|श्रु स्वयमन् निर्विषणो भवसागरे । अधिगम्याधिपत्ये स वैराग्यं प्रनजियति । १७७ व ध्वं तद्भवसंबंध शृणोमिनः । श प्राह ुनि सुष्ट, श्रृणुतास्य अवस्थिति' । १७८|अंधू द्वीपे विख्याते भारते विषयो महान् । कोशलः कुशलैलों केः संपूर्णः सम्प भूतः ॥ १७६ ॥ वृद्धः समाकीर्णो दृद्वप्रामो मनोहरः । मृगायणाभिधस्तत्र विद्यते घाड़वाप्रियः | १८० धर्मपत्नी च तस्यैव बभूव मधुर स्वर चम्पकर्णा भर्तुः स्वेच्छानुचारिणी ॥ १८९॥ बभूत्र वारुणीनास्ता तयोः पुत्री विशालधोः । मृगायणो इय कालांते मृषो मामप्रियो भूषं ॥ १८२ ॥ अथ प्राक् पुरुदेवस्य भक्तपे निर्मितामरैः । साकेता द्विरौ स्त्रियुक्त योजनैर्भाति भूतले ॥ २८३ ॥ तल राजासित मध्य सी सामन्यसेवितः । रराजातिवलो नाम्ना तिमीशवदनो महान् ॥ १८४ ॥ तस्य रामा रमेयासीत्सुम
इसी जंबूद्वीप भर में एक कोन नामका महादेश है जो कि विद्वान लोगोंस परिपूर्ण है और संपदाका खजाना है । कोशल देशमें एक बृद्धग्राम नामका महामनोहर नगर है जो कि सब बातों में बृद्ध पुरवासी जनोंसे भरा था । बृद्धगाम नगर में एक मृगायण नामका ब्राह्मणोंका सरदार रहता था । उसको धर्मपत्नीका नाम मधुरा था जो कि सोना और चंपा के रङ्गके समान महामनोहर वर्णकी धारक थी और पतिकी अतिशय आज्ञाकारिणी थी ॥१७४ - १८० ॥ उन दोनों ब्राह्मण और ब्राह्मणी के एक वारुणी नामकी पुत्री थी जो कि अत्यन्त बुद्धिमती थी कदाचित् काल पाकर उसका पिता मृगाय मर गया ।। १८१ – १८२ ॥
इसी पृथ्वीपर एक साकेता नामकी नगरी है जिसका कि निर्माण भगवान ऋषभ देवके समय में उनकी भक्ति प्रगट करनेके लिये देवोंने किया था और जो बारह योजन पर्यन्त पृथ्वीपर विरती है | साकेता नगरीका स्वामी राजा अतिबल था जोकि अपने शत्रु राजाओंके बंशका नाश करनेवाला था। अनेक स.मंतोंसे सेवित था । चन्द्रमाके समान मुखसे शोभायमान और महान था ॥ १८३ | १८४ ॥ राजा प्रतिलकी रानीका नाम सुमति था जो कि लक्ष्मी के समान परम सुन्दरी
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