________________
сұКЕККККККК.
सुत' स्नेहाद्रामदत्ता नयत्स्तुति । धन्यस्त्वं यौधने साधो ! राज्य' त्यक्त्वा भवेद्यतिः ।।१७॥ सिंहसेनान्वयाम्भोजकर्मसाक्षी कला. निधिः । भव्यविश्वकोषु त्वं संसारतरस्तरां ॥ १०१॥ स्तुत्वा स्थित्वा तदभ्यण कुशलं तसपोविधौ । अन्धयुक्कादरा हि व्या राम दक्षा मुहुर्मुहुः ।। १७२ ॥ पप्रच्छे ति मुनि भूयः सा साधो ! तव यांधवः । पूर्णचन्द्राभिधो राज्यं धर्म त्यक्त्वा भुनत्त्या ॥ १७३ ॥ सुखाकांक्षी स किं धर्म गृहीष्यत्यथ वा नहि । व हि त्व' झानमार्गेण यायातथ्यं तपोनिधे ! ।। १७४ ॥ सिंहचन्द्रो मुनिः प्राह युष्मद्धर्म गृहीष्यति । रामदत्ता पुनः प्राप्त कथं साधो ! निगयतां ।२७५/मुनिः प्राह भवांस्तस्य श्रुत्वा तामनिकापतान् । तत्प्रे ज्ञानमार्गेण कथ ____ मुनिनाथ ! तुम्हारा बन्धु राजा पूर्णचन्द्र धर्मकी कुछ भी पर्वा न कर राज्य सुख भोग रहा है वह मुझ विषय सुखोका प्रेमी जान पड़ता है कृपाकर कहिये कि वह पवित्र धर्मको धारण करेगा | या नहीं क्योंकि तुम दिव्य ज्ञाननेत्रके धारक महापुरुष हो इसलिये अपने दिव्य ज्ञानके द्वारा यह बात मुझे समझा दीजिये ॥१६८-१७३॥ उत्तरमें मुनिराज सिंहचन्द्र ने कहा वह नियमसे जैनधर्मको धारण करेगा इस बात में कोई सन्देह नहीं । रामदत्ताने फिर पूछा-प्रभो। किस उपायसे वह जैनधर्म धारण करेगा कृपाकर कहिये । उत्तरमें पुनः मुनिराज सिंहचन्द्रने कहा
मैं अपने अवधिज्ञानसे पूर्णचन्द्रके भवोंका वर्णन करता हूँ तुम ध्यान पूर्वक सुनो और पूर्ण चन्द्रको जाकर कह दो। तुम निश्चय समझो जिससमय वह अपने पूर्व भवोंको सुनेगा राज्यात सुखमें अतिशय मग्न रहने पर भी वह नियमसे संसारसे विरक्त हो जायगा और दिगंबरी दीक्षा धारण करेगा । मुनिराज सिंहचन्द्रसे यह राजा पूर्णचन्द्रके वैराग्यका उपाय सुन आर्यिका 5. रामदत्ता बड़ी प्रसन्न हुई और बड़े आदरसे उसने मुनिराजसे यह कहा-कृपाकर राजा पूर्णचन्द्र - के पूर्वभवोंको आप कहिये में सुनने के लिये तयार हूं । उत्तरमें मुनिराज सिंहचन्द्रने कहा-मैं खुला सा रूपसे राजा पूर्ण चन्द्रके पूर्वभषोंको कहता हूं तुम ध्यान पूर्वक सुनो
-
-