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________________ नल ६५ RA I भगवनामा वणिक्तः ॥ १३२॥ श्रुत्वा धर्मे ततः प्राज्यं ददों दानं स धोधनः । व्ययोकुर्व तमालोक्य तस्मै माता चुकोप च ॥ १३३॥ वित्या वार्यमाणोऽपि दानं दातु ं समुत्सुकः । वभूव च तदा कीर्ति चैतालिक मुखोद्गता ॥ १३४ ॥ दत्तिणां कोधनोऽ रागवित्तानां मोहवः शूराणां कातराणां व रणौत्सुक्यादनं च किं १३५ कोपादसहमाना सा तद्दानं दुर्मतिप्रिया । काले मृत्वासनायां व्याधी जम धधे शात् ॥ १३६ ॥ रौद्रध्यानाद्भवेऽजीवी व्याघ्रमारयोनिषु । प्रयातिपन्नगीभूय बुधोऽतस्तत्परित्यजेत् ॥ १३७॥ एकदा भद्रमि नाख्यः क्रीडार्थ' सङ्घनं गतः । दष्ट्रा तं सा महाकोपादादत्स्वसुत स्वरा ॥ १३८ ॥ यतः फोधो यतो माया यतो धर्मार्थनाशनं यतो बेर' यतो हिंसा धित' लोभं ध नाचरेत् ॥ १३६ ॥ स मृत्वा स्नेहतो भव्य रामदोदभवत् सिंदचन्द्रः सुतो धीमान, मोन 都商都響楽 जिस समय व्याघ्रीके खानेके बाद सेठ भद्रमित्रकी मृत्यु हुई वह पूर्व भवके स्नेहके संबंध से (५ होकर रामें जाकर युद्ध करते हैं । भद्रमित्रकी मां अत्यन्त दुर्बुद्धि थी भद्रमित्रके द्वारा दिये गये दानको मारेकोधके उसने अच्छा नहीं कहा मरकर बह कर्मके उदयसे उसी आसना नामकी अट में व्याधी हो गई । ठीक ही है रौद्रध्यान ऐसी बुरी चीज है कि उससे जीवको व्याघ्री और विल्ली आदी योनियों में जन्म धारण करना पड़ता है । सर्प हो जाना पड़ता है इसलिये जो बुद्धिमान हैं। उन्हें चाहिये कि वे रौद्र ध्यानका सर्वथा त्यागकर दें -- कभी उसके जालमें न फसें ॥१३२ - १३६॥ एक दिनकी बात है कि सेठ भद्रमित्र कीडार्थ बनमें गया। उसकी पूर्वभवकी मा व्याधीकी दृष्टि उसपर पड़ी और उसने पूर्वभव के बैरके कारण भद्रमित्रको खा डाला । यह निश्चय है कि इस दुष्ट लोभ ही कारण क्रोध, माया, धर्म और धनका नाश एवं वैर होता है इसलिये ग्रन्थकार कहते हैं। कि ऐसे दुष्ट लोभके लिये धिक्कार है ॥१३७७१३८ || राजा सिंहसेनकी रानी रामदत्ताने भद्रमित्रकी पूर्ण प्रतिष्ठा रक्खी थी इसलिये भद्रमित्र रानी रामदत्तासे विशेष स्नेह रखते थे और उसे अपनी मासे भी अधिक मानते थे । SUSPIRE
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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