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________________ द्रव्यं भूरितर सुत!वित समापनेताह किम कम्यता स्व ७८ सुतोऽस्माकं त्वं लघुललविग्रहः । षयित्वाथ तं। पश्चात् योगी भूत्वा भ्रमाम्यहं ।। ७६ ॥ तिरस्कृत्य पितुर्वावयमत्याग्रहत्या गतः परताद्वीपे समुत्तीर्य ललकल्लोलसागरं ॥ ८०॥ तत्र स्थित्वाऽगमसिंहपत्तने भद्रमित्रयाक् ।। ८१॥ सत्य सत्वोचण्य मन्त्रिण परमावरात् ।। प्राचुर्य प्राभृत मुक्त्या पप्रच्छेति वणिक् सुतः ॥ ८२ ॥ युष्मत्प्रेम भवेतहिं ममोपरि यदा विभो ! । निधासार्थ समापामि पसनेऽथ सुखाप्तये ॥ ८३ ॥ सत्यघोषेण सन्मान्य जगदे कमानेकी इच्छासे परदेश जा रहे हो । पुत्र ! तुम मेरे एक ही पुत्र हो तिसपर भी तुम सुन्दर शरीर के धारक छोटी उम्रके हो तुम्हें परदेश भेजकर क्या में योगी होकर पृथ्वीपर घमूगा? ॥ ७८-15 ७६ ॥ कुमार भद्रमित्रने अपने पिताके वचनोंपर कुछ भी ध्यान नहीं दिया वह मोह तोड़ शीघ्र ही चल दिया एवं जिसमें प्रबल तरङ्ग उठ रही हैं ऐसे गम्भीर समुद्रको पारकर रत्नद्वीपमें जा पहुंचा। ॥८० ॥ वरावर बारहवर्ष तक रत्नद्वीपमें रहा । रत्न आदि बहुतसा धन उपार्जन किया और घूमता २. वह कुमार भद्रमित्र एक दिन सिंहपुर नामक नगरमें आ पहुंचा । सिंहपुर नामका नगर उस D समय अद्वितीय सुन्दरताका स्थान था और उसमें सत्यघोष नामका राजमंत्रो निवास करता था ।। | कुमार भद्रमित्र : आदर पूर्वक मन्त्री सत्यघोषसे मिला । बहुतसी उसे भेंट दी और उससे इस ka प्रकार पूछा स्वामिन् ! यदि आपका मेरे ऊपर प्रेम हो तो में सुख भोगनेकी आशासे इस महामनोज्ञ, नगरमें कुछ दिन निबास करू'! कुमार भद्रमित्रकी यह बात सुन मन्त्री सत्यघोष बड़ा प्रसन्न find हुआ । कुमारको उसने बड़े सन्मानको दृष्टिसे देखा और बडे आदरसे यह कहा भाई ! तुम्हारे यहां रहनेसे मैं बड़ा प्रसन्न हू । शीघ्र ही तुम अपने माता पिताको लेकर यहां IS आइये और रहिये । मन्त्री सत्यघोषकी बातसे कुमार भद्रमित्र बड़ा ही सन्तुष्ट हुआ। कुमार भद्र VkrRKEKTEKKKKKKKKKK
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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