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________________ मिल २८ ЖЕЖЕЖекетке қарай भूशं । तवा वभाण हे पुत्रि ! मूणामा समागतः ॥ १४० ॥ कध झातस्त्वया मूर्खः, गणु पुत्रि ! निगद्यते । जिहारधादिसंप्रोक्त श्रुत्या हर्षमुपागता ॥ १४१ ॥ उक्त च---. . जिहारथः पावसुरक्षणं च छत्र तथा प्रामयिनिश्चयश्च । नारी शर्व शालिवनं च ड़ा (हा) ले काटक्यवार्तेति च फलप्यतेस्म ॥ १४२ ॥ नंदश्रीः पित प्राह नासौ मूर्खः स्पानिधे ! द्वात्रिशलक्षपयुक्तो वर्तते कुत्र हे पितः १ ॥ १४३ ॥ दत्तस्तदा प्राह सरस्तीरे स्थितो. ताऽस्ति सः । श्रुत्या सा चिंतयामास परीक्षयेऽहं शुभं गरं ॥ १४४ ॥ तदा विपुलमत्याच्या सीमाकार्य वेगतः । प्राहेति धचन रम्यं कुरु * कार्यमिवं स्वकः॥ १४५ ॥ नखेन तैलमादाय याहि त्वं सरसस्तटे । तत्रस्थितस्य गोधस्य देहि स्नानार्थमंजसा ।। १४६ ।। प्रतिपद्य गताउपमा धारण करती थी। जिस समय सेठ इंद्रदत्त घर पहुंचे उन्हें अत्यंत थका हुवा जान नंदश्री ताड़ गई कि इनके साथ कोई न कोई अन्य मनुष्य भी आया है क्योंकि अकेला चलनेवाला मनुष्य अपने खायानुकूल अति बलता है इसलिये विशेष नहीं थक सकता किंतु साथमें अन्य मनुष्य के रहते दोड़ा दोड़ी चलना पड़ता है इसलिये विशेष थकावट हो जाती है, इसलिये उसने शीघ्र ही । पछा-पिताजी ! तुम किसी न किसीके साथ आये जान पड़ते हो कृपाकर कहिये आपके साथमें 2 जो आया है सो कौन है ? उत्तरमें इन्द्रदत्तने कहा-पुत्री ! में अवश्य किसी अन्य पुरुषक साथ आया हूँ परंतु मेरे साथ आनेवाला वज मूर्ख है। पिताके ऐसे वचन सुन नंदश्रीने फिर पूछा--- पूज्य पिता ! आपने यह कैसे जाना कि आपके साथ आनेवाला पुरुष मूर्ख है ? उत्तरमें सेठ इन्द्र- : दत्तने जिह्वारूपी रथपर सवार होकर चलना, जूता पहिने ही नदीमें प्रवेश कर जाना, वृक्षके नीचे छत्री लगाकर बैठना, गांधको उजड़ा बसा कहना, स्त्रीको बांधी छटी कहना, यह मुर्दा आज मरा है - वा पहिले, धान्यके खेतके फल खा लिये वा खाये जायेंगे हल और वदरीके कांटोंके विषयमें जो भी बात चीत हुई थी सारी कह सुनाई। जिस समय कन्या नंदश्रीने सारी बातें सुनी उसे बड़ा हर्ष हुआ। शीघ्र ही उसने अपने पितासे कहा—कृपानाथ ! ऊपर कही हुई बातोंसे जो आपने उसे | प्रय
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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