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________________ KEE शानं कर्मपंकजे ॥ २१ ॥ नास्तिभ्यं सोगतागारे विरोधोधरपल्लवे । जघने चापि दन्तेर्वाकरजैविद्यते कृतः ॥ २२ ॥ तब राजा बभू वारिमामालोचनतोयकृत् । सिंहसेनो महासैभ्यः सिंहभूरिपराक्रमः ॥ २३ ॥ चित्रभानुसुप्राभानुचन्द्रभानुप्रताधिकः । सासिय भोरवे नैव कातरः कढणालयः ॥ २४ ॥ युग्मं । अत्रोकर धमपूजज्जगगुरु । अदीदहविषां देशानर्थिभ्यो ददश ॥ २५ ॥ मकान शोभायमान थे एवं लाल२ओठों की धारक स्थूल स्तनोंसे व्याप्त सदा हंसनेवाली और विलासरस परिपूर्ण स्त्रियां थीं। सिंहपुर नगरमें सारी प्रजा सदाचारिणी थी इसलिये राजाकी ओर से किसी प्रकारके दण्डका विधान न था । यदि दण्ड था तो चैत्यालयोंके शिखिर भागोंपर था जिसपर कि ध्वजा फहरातीं थीं। वहांपर किसी बात में भ्रांति न थी - सब लोगोंको ठीकरूपसे पदार्थों का निश्चय था । यदि भ्रांति थी तो भगवानकी प्रदक्षिणाओंमें थी --- लोग घूम २ कर भगवान जिनेन्द्रकी प्रदक्षिणा करते थे | कठिनता वहांपर स्त्रियों के स्तनोंमें ही थी अन्य कहीं किसी मनुष्य के हृदय में कठिनता न थी -- सब लोग सरल परिणामी थे । कर्मपंकजके सिवाय वहांपर किसीको मारने पीटने की प्रथा न थी । उस सिंह पुरमें नास्तिकता बौद्धमन्दिरोंकी थी— कोई भी बौद्धधर्मका अनुयायी न होनेके कारण किसी भी बुद्ध मन्दिरकी वहां पर सत्ता न थी परन्तु वहांपर लोग नास्तिक न थे--- पर लोक आदि पदार्थों पर पूर्ण विश्वास रखनेवाले थे। बहांपर दांत वा नखोंका जघन और अधर math ही साथ विरोध था आपसमें किसीके साथ कोई विरोध नहीं रखता था ॥ २०-२२ ॥ सिंहपुरका रक्षण करने वाला राजा सिंहसेन था जो कि शत्रुओं की स्त्रियोंके नेत्रोंसे आंसू बहाने वाला | था । विशाल सेनाका स्वामी था और सिंहके समान प्रबल पराक्रमी था । वह राजा सिंहसेन चित्र भानु सुधा भानु ओर चन्द्रमाद्योंसे भी अधिक प्रभाका धारक था । संग्राम में शत्रुओं को पीठ न दिखाने के कारण वह वलवान खड्गधारी था। धर्मका आचरण करता था। तीन जगतके गुरु की पूजा KKAR
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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