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________________ विधाय शत्कर'॥ ११२ ॥ महातपा यः परमेण तेजसा । जगाम सिद्धिं सुकृतोदयाम्म निः। सुगद्राचितपरकाः सदा । स पातु मध्यान् जिनसेवितः ।। ११३ ॥ इत्या श्रीवृद्धिमलनापपुराणे म० रत्नभूषणाम्नायालङ्कारविजनचातुरीसमुश्चन्द्राक्षारोभयमाषाचक्रवहिर्ष वीरकातनजघहषाशसविरचित प्रगलदाससाक्षाय्यसाक्षे यैनर तसंजयन्तजस्तदीक्षाग्रहणसंजयंतो - पसर्गशिषप्राप्तिजयंतधरणत्वप्राप्तितदागमादित्याभदेवसमागमो नाम षष्ठः सर्गः ॥६॥ जो मुनिराज संजयन्त दिव्य तेजके धारक परम तपस्वी थे। तीब्र पुण्यके उदयसे जो मोक्ष लक्षमीके पात्र बने जिनके चरणोंको बड़े २ इन्द्र पूजते हैं और बड़े मुनि जिनकी आराधना करते हैं वे मुनिराज भव्य जीवोंकी रक्षा करें ॥ ११ ॥ इसप्रकार महारक रलभूषणकी आम्नायके अलंकार स्वरूप विद्वानों के विद्वत्तारूपी समुद्र के लिये चंद्रमा समान उभय भाषाके चक्रवर्ती हर्षवारिकाके पुत्र माई ब्रह्ममंगल दास की सहायता पूर्वक ब्रम कृष्णदास विरचित वृहत् विमलनाथ पुराणमें बैजयंत संजयंत और जयंतका दीक्षा ग्रहण संजयंतको घोर उपसर्ग और मोक्ष प्राप्ति जयंतका धरणेंद्र होना और आदित्याभ नाग कुमारका समागम वर्णन करनेवाला छठा सर्ग समाप्त हुआ ।। ६॥ KERAYERemedies सातवां सर्ग। श्री उ.गन्माप द शद । य स्तौतिस्म देवालि चाये परमेश्वर ॥ १॥ अधादित्यप्रभोऽहीशंप्रोवाचेति ___जो भगवान जिनेन्द्र जगतके नाथ हैं । लक्ष्मी प्रदान करनेवाले हैं। पापोंके नाशक और क ल्याणके देनेवाले हैं और जिनकी स्तुति बड़े २ इन्द्र करते हैं उन भगवान जिनेन्द्रको में नमस्कार IPE करता हूँ ॥१॥ महान ऋद्धिके धारक आदित्याभ नागकुमारने अपने मित्र नागेंद्रसे कहा TRUETRICSEE
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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