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॥ १२६ ॥ यास निश्चिनोतिस्म गर्गीय संभ्रमी शठः । नानाधस्तुसमाकीर्णं पुरं पृच्छति वार्तकं ॥ १२७ ॥ केनचित्ताड्यमानां हि हृष्ट्या रामां जगाद तं । भो माम! ताज्यते यद्धा मुक्का वा कधय द्रुतं ॥ १२८ ॥ पूर्ववचितयन् श्रष्ठी तावद्दष्ट्वा शवं जगी । भो माम ! द्राबू मृतं किंवा सांप्रतोदं मृतं वद ॥ १२६ ॥ तथाकर्ण्य पुनश्चित्ते चिंतयामास पूर्ववत् । पुरस्ताच्छालिकेदारं दृष्ट्वा प्रोवाच तं प्रति ॥ १३० ॥ माम ! भोक्ष्येत किं क्षेत्र भुक्तं वा त्वं निरूपय समाषार्ण्य तदा श्रं ष्टीदमीयं कीषितं च धिक् ॥ १३१ ॥ लांगलं च
से व्याप्त है तो भी व्यर्थ पूछता है कि यह उजड़ा हुआ है या बसा हुआ ? ॥ १२६ – १२७ ।। आगे चलकर क्या देखा कि एक स्त्रीको बाँधकर कोई पुरुष मार रहा है । उसे देख कुमार ने सेठस े पूछा मामा ! कृपाकर जल्दी बताओ तो कि जिस स्त्रीको यह पुरुष मार रहा है यह बंधी हुई है वा मुक्त छूटी हुई है । कुमारकी बतिका तात्पर्य न समझकर फिर भी वह सेठ विचारने fit कि यह बालक तो बजू मूर्ख हैं। सबको दीखती है कि यह स्त्री बंधी हुई हैं तो भी यह झूठा जवाब सवाल करता है। आगे चलकर एक मुर्दा पड़ा उसे देखकर कुमारने पूछा-मामा ! कृपा कर कहो कि यह मुर्दा पहिले ही मर चुका है कि अभी मरा है ? सेठ इन्द्रदत्त कुमारके इन बच नका भी तात्पर्य न समझ सका इसलिये पहिले के समान वह पुनः भी यही मनमें कहने लगा कि यह बालक भारी मूर्ख है । अभीके मरे मुर्देको भी नहीं जान सकता। आगे चलकर एक शालि धान्यका क्षेत्र पड़ा उसे देखकर कुमारने फिर इन्द्रदत्त से पूछा- बताओ मामा ! इस खेत के | मालिकने इस खेत के फलोंको पहिले खा लिया है कि अब खायगा ? कुमारके वचनोंका तनिक भी तात्पर्य न समझ अबके तो इंद्रदत्त कुलकुला उठे क्योंकि वे समझते थे कि जब धान कटे ही नहीं तब पहिले कैसे खाये जा सकते हैं ? कुमारने खेतको देखकर जो प्रश्न किया है वह वज्र मूर्खताका है इसलिये वे यही कहने लगे कि ऐसे मूर्खता परिपूर्ण जीवन के लिये धिक्कार है ।। १२८- - - १३१ ॥ आगे चलकर एक हल दीख पड़ा। उसे देखकर कुमारने इ' द्रदत्तसे पूछा- बताओ मामा
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