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________________ ७ PRरूर PAPAREKPKYKKNA गृह विराजन्ते प्रोश गगनसंस्पृशः । पताकायलिभिर्भव्यानायंति च वेगतः ॥ २१ ॥ धर्मairavati दानधीराः कृपायुक्तः । श्रमज्ञाः सुन्दराः शूरा बियंते सज्जना अपि ॥ २२ ॥ पुरे तव महेम्याठ्ये वैजयन्तो नराधिपः हातापाता श्रुतज्ञातार्तारिश्रियश्व वे ॥ २३ ॥ प्रतापकांतभूपालमंडलीकः कलानिधिः । क्रूर सोम्यगुणान्वीतो मोनरत्नीत्र वारिधिः ॥ २४ ॥ राजन्ते सिंधवो वामाः सुधाया इव सिंधवः 1 भूरयः कंबुगामिन्यः पुन्नागमतयो वलाः || २५ || सर्वथ्याख्या महादेवी तस्या गन्ध मालिनी देशके अंदर एक वीत शोक नामका नगर है जो कि अनेक प्रकारकी ऋद्धियों | से व्याप्त है। जिनके अन्दर बड़े २ गोपुर खास दरवाज शोभायमान हैं ऐसे विस्तीर्ण परकोटोंसे व्याप्त है अतएव वह स्वर्गपुरोके समान जान पड़ता है। वीत शोक नगरके विशाल जिनमंदिर जो कि अपनी ऊचाईसे आकाश मण्डलको स्पर्शते थे अत्यंत शोभायमान जान पड़ते थे तथा उनके | ऊपर पताकायें फर हराती रहतीं थीं इसलिये वे ऐसे जान पड़ते थे मानों भव्य जीवों को ये बुला रहे हैं। उस नगरके निवासी सज्जन धर्म कार्यों में पूर्ण धैर्य रखनेवाले थे । तपके आचरण में बड़े धीर वीर थे अत्यंत दानी कृपालु विद्वान सुन्दर और शूर वीर थे । २०-२२ ॥ अनेक धनिकों से व्याप्त उस वीत शोक नगरका स्वामी राजा वैजयंत था जो कि अत्यंत दानी था । प्रजाका न्याय |पूर्वक पालन करनेवाला था । शास्त्र के मर्मका पूर्णज्ञाता था एवं शत्रुओं की लक्ष्मीका हरण करने वाला था । अपने प्रतापसे उसने समस्त राजा लोग वश कर रक्खे थे । अनेक कलाओं का वह भंडार था एवं जिस प्रकार समुद्र मीन और रत्नोंका स्थान होता है उसी प्रकार वह राजा भी करता और सोमता रूपी गुणों का स्थान था । २३ - २४ ॥ राजा वैजयंतकी बहुत सी रानियां थीं जो कि परम सुन्दरी थीं। अमृतकी साचात्समुद्र थीं। गजगामिनी पवित्र बुद्धिकी धारक और विमल थीं। राजा वैजतकी पटरानीका नाम सर्वश्रीप्या जो कि साचात् लक्ष्मी वा सूर्यकी स्त्री प्रभा वा रम्भा I शालालिमंडित स्वर्गपूरिव ॥ २० ॥ PAYAN
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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