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१४ ॥ तस्या उदकृतटे गंधमालिनी विषयो महान् । यातायातः सरामाणां सुराणां रम्यभूततः ॥ १५ ॥ भूरुहें यत्र विद्यते भूरिपुष्प फलांचिताः । कोकिलालिकलाप्यता दानच्युत्कुलिकंपिताः ॥ १६ ॥ निगमा यत्र राजते शालोक्ष क्षेत्र कोटिभिः । पदे परे तड़ागानि पङ्कजालयुतानि च ॥ १७ ॥ योगदर्षि पन्न्यासपवित्रतमहीधराः । लसंति लचलोबल्लोपुष्पसौगंधिवायवः || १८ || अन्नधान्य जबस्त्रा वा वासंती चलनालिट्ठक् । अणी वेपोर्मिवेषा च राजते हंसनूपरा ॥ १६ ॥ तत्रास्ते वीतशोकास्थं पसनमृद्धिसंकुल । गोपुरोद्भासि गंध मालिनी नामका एक विशाल देश है। वहां पर अपनी अपनी देवांगनाओं के साथ सदा देवोंका आना जाना वना रहता है इसलिये सदा उसकी पृथ्वी रमणीक वनी रहती है । गंधमालिनी | देशके वृक्ष सदा अनेक प्रकारके पुष्प और फलोंसे व्याप्त रहते हैं सदा उनपर कोयल भ्रमर और मयूरोंके महा मनोहर शब्द हुआ करते हैं और मदोन्मत्त हाथी सदा उन्हें कंपित करते रहते हैं । गंधमालिनी देशके गांव करोडो धान्य और ईखोके खेतोंसे व्याप्त रहते हैं तथा पदपद पर वहां पर विद्यमान हैं जो कि भ्रमरों से युक्त कमलोंसे व्याप्त रहते हैं ।। १३--१७ ॥ वहांके पर्वत व्यानारूढ मुनियोंके चरणोंसे सदा पवित्र वने रहते हैं और लबली नामकी लताओं के पुष्पोंकी सुगन्धिसे सदा वहांकी पवन सुगंधित बहती रहती है। वहां पर वसंत ऋतुकी शोभा मनोहर बीके समान अत्यन्त शोभायमान थी क्योंकि स्त्री जिसप्रकार वस्त्र पहिनती है उसीप्रकार वसंत ऋतुकी शोभा भी फूले हुए कमलरूपी वस्त्र पहिने थी। स्त्रीका मुख होता है उसीप्रकार वसंत ऋतुको शोभा भी कमलरूपी मुखों से शोभायमान थी । स्त्रीके नेत्र होते हैं उसी प्रकार चलते फिरते भोरेही उस वसंतको शोभा के नेत्र थे । स्त्री जिसप्रकार सुन्दर वेषसे शोभायमान रहती है उसी प्रकार वसंत ऋतु की शोभा भी जल वा तरङ्ग रूपी सुन्दर वेषसे शोभायमान थी ॥ १८-१६ ॥
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धनपराय