SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ न उपपपपपYYYY स्थाय वेगतः। संरम्भण महाभूत्या अग्मतुर्वेदितु जिनं ॥ २॥ गत्वा रत्नासनासीम जिन बिमलवाइन। नत्वा पद्वारिज स्तुत्वा गद्यपधैः स्थिती सुख ॥३॥ सदावददाधीशो मेहतामरसा प्रभाभारभरि देवं निति सादरात् ॥ ४॥ कर्ममुण्महिमाकेवात पतिपरकज प्रभो ! थोतुमिच्छामि म्रातुमेंऽथ भवावलि ॥५॥ ज्योत्स्नोल्लासितदाराशिमहाघोषसमध्वनिः । मेरु' प्राति भव्यौ धाम्मोजभानुर्जिनो न ! ॥ ६ ॥ सम्यक् पृष्टं त्वयो यत्सासंख्यजीधसुखप्रद । त्वं च मैदरनामा च यास्यतोऽतः शिवालयं ॥ मलनाथ उस समय रत्नमयो सिंहासन पर विराजमान थे। दोनों भाइयोंने अनेक प्रकारके मनोहर गद्य पद्योंमें भगवान विमलनाथके चरण कमलोंकी स्तुति की एवं सुख पूर्वक मनुष्य कोठमेंजाकर बैठ गये ॥ २–३ ॥बे भगवान विमलनाथ उस समय महा मनोज्ञ कांतिसे शोभायमान थे और समस्त प्रकारके द्वदोंसे रहित हो । कमलकी सभा समान शोभायमान राजा मेरुने अवसर पाकर भगवान जिनेंद्रसे इसप्रकार बड़े आदरसे पूछा भगवन् ! आप समस्त प्रकारके कोके नाश करनेवाले हो । सवोंके स्वामी हो । वड़े बड़े इन्द्र | | भी आपके चरण कमलोंको पूजते हैं स्वामिन् ! में अपने भाई मंदिरका पूर्वभवका वृत्तांत सुनना | चाहता हूँ कृपाकर कहिये । वे भगवान जिनेंद्र चंद्रमाके संबंधसे लहलहाते हुए विशाल समुद्रके गंभीर शब्दके समान दिव्य ध्वनिके धारक थे और भव्यरूपी कमलोंके प्रकाशनेके लिये सूर्यस्वरूप थे। राजा मेरुका इस प्रकारका प्रश्न सुन उन्होंने उत्तरमें कहा---- राजन् ! इस समयका तुम्हारा |प्रश्न बहुत ही उत्तम है। असंख्य जीवोंको सुख प्रदान करनेवाला है । तुम निश्चय समझो तुम - और मंदिर दोनों इस भवसे मोक्ष पाओगे । मन्दिरके पूर्व भयके वृत्तांतको तुम आदर पूर्वक - सुनो क्योंकि तुम एक मनीषी पुरुष हो किन्तु जो पुरुष अन्तरङ्गमें सार रहित मनीषी नहीं होते NI उन्हें कितना भी उत्तम उपदेश क्यों न दिया जाय वह उनको वड़ा दुःखदायी जान पड़ता है क्यों ahbadFERY W
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy