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मन्बीनचेतसा । योगिना निश्चय ध्यान तस्यास्ते का स ससृतिः ॥ ११ ॥ तियंग्गतिर्भवेदार्ताद्वात् श्वभ्रगतिभवेत् । धध्याना ।
सवेत्स्वर्गः शुक्लध्यानाछियास्पदः ॥ १६१ ॥ इत्यादिश्रद्धया राजन् ! सम्यक्त्वं निर्मलं भवेत् । तस्मिन् सति महाकर्मक्षगस्तस्मिन् न निरजनः ॥ ११२ ॥ तस्थानीना कथा कार्या ध्यान ध्येय मनोधिभिः । अन्तम हूत मध्यानात्कोटिकर्मक्षयो भवेत् ॥ ११३ ।। ।।
श्रुत्वा नत्थामृरसमहा राजपुत्री सुभावात् देद्रायें जिनवर मुखाम्भोजजात प्रशस्तं । भव्यस्वाय सकलजनामा सिर :मी तो दूसरहदी नन्दयामासनुर्थे ॥ ११४ ।।
___जग्मतुर्थिनयमेरुमन्दिरों सझपङ्कजद्दशौ गुणान्वितो । INE मलनाथने कहा-इस प्रकारके तत्त्वोंके स्वरूप पर श्रद्धान करनेसे सम्यक्त्व निर्मल होता है । स-12
म्यक्त्वकी निर्मलतासे समस्त कमों का क्षय होता है एवं जिस समय समस्त कर्म नष्ट हो जाते हैं | उस समय यह आत्मा निरंजन-परमात्मा बन जाता है। जो पुरुष मनीषी- विद्वान हैं उन्हें अपने र
आत्मकल्याणकी अभिलाषासे सदा तत्त्व आदिकी कथा करते रहना चाहिये क्योंकि यदि अंतर्मु- 2 नहुर्त पर्यत भी उत्तम ध्यान आचरण कर लिया जाता है तो उस ध्यानसे देखते २ करोड़ों कों - M का क्षय हो जाता है ॥ ११०-११२॥ ना इस प्रकार मेरु और मंदिर नामके राज पुत्रोंने उत्तम भावोंसे भगवान विमलनाथके समवस-koi शरणमें तत्त्वामृत रसको आस्वादन किया जिसकी कि लालसा बड़े २ देवोंके इन्द्र रखते हैं। जो भग
वान जिनेन्द्र के मुखरूपी ममुद्रसे उत्पन्न है। जो प्रशस्त है। भव्य जीवोंके स्वादने योग्य है । । समस्त मनुष्योंको आनंद प्रदान करनेवाला है और दुर्गतियोंका नाशक है तथा कामदेवके समान
सुन्दर और कोमल परिणामी वे दोनों राजपुत्र उस तत्वामृतरसके आस्वादनसे बड़े ही आनंदित ॥ हुए । तथा कमलके समान विशाल नेत्रोंके धारक अनेक गुणोंके भण्डार एवं धीर वीर चित्तके
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