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________________ AYANAN कंपेति ॥ दुरायोऽयजीयने केन हेतुना ॥ ४१३ || विचिंत्य बहुशः स्वांते शख्यवाणं मुमोच ॥ सैनिका 'येन शतांश्च कीलिता अमवन्निव ॥ ४४ ॥ संमोहन द्वितीय' च तामसास्त्र' तृतीयकं । युगपद्ध्यानशे मुक्त स्वयंभूसंग राज्ञि ॥ ४१५ ॥ मूच्र्छता अपतन्वोरा रावीरा रुधिरारुणाः । गजोपांत स्थिताः सायंरागा इव तमोन्विताः ॥ ४१६ ॥ तमोभिरखिलं सैन्य व्याप्त ं गतमिवाभवत् । प्रलम्बध्न तदा प्राह स्वयं भूर्भूरिविक्रमः ॥ ४१७ ॥ आवाभ्यां किं विधातव्यं भ्रातरद्य वद त्वरा । दुर्जयो कारणसे इसे जीतना चाहिये ? इस प्रकार बहुत समय तक मन ही मन विचार कर राजा | मधुने नारायण स्वयंभू की सेनामें शल्यवाण छोड़ा जिससे उसकी सेनाके समस्त सुभट कीलित हो ज्योंके त्यों रह गये ॥ ४१३ -- ४१४ ॥ मधुने दूसरा संमोहन नामका वाण छोड़ा जिससे समस्त सुभट मूर्छित हो गये। तीसरा तामसा छोड़ा जिससे सर्वत्र अन्धकार हो गया इस प्रकार राजा मधुके द्वारा एक साथ छोड़ े हुए इन तीन वाणोंसे नारायण स्वयंभूका सेना क्षेत्र एक साथ व्याप्त हो गया। उस समय नारायण स्वयंभू के सुभट हा २ शब्द करते हुए पृथ्वी पर गिर गये उनका समस्त अङ्ग लोहू लुहान था और काले हाथियोंके समीप वे पडे थे इसलिये वे अन्धकार से परिपूर्ण सायं कालकी लालामी के समान जान पड़ते थे । ४१५ - ४१६ ॥ अन्धकार से व्याप्त समस्त सैन्य ऐसा जान पडता था मानों यह नष्ट ही हो गया है अपने सैन्य मंडलकी यह शोचनीय दशा देख कर पराक्रमशाली स्वयम्भू ने अपने भाई वलभद्रसे कहा प्रिय भाई ! शीघ्र कहो अब हम दोनोंको क्या कार्य करना चाहिये क्योंकि यह राजा मधु दुर्जय और वलवान शत्रु है एवं मेरु पर्वत के समान निश्चल है यह नियमसे हमें जीत लेगा। देखो तो इस दुष्ट शत्रुने हमारा समस्त सैन्य व्यामुग्ध कर दिया है और जबरन अपने तीक्ष्ण वाणोंसे नष्ट भ्रष्ट कर डाला है। नीति यह सूचित करती है कि जिसप्रकार विष बृक्षकी लता प्राणोंको 寿春
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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