SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ のお弁 PKVKREK भूचरेभूरिदानधै तत्पत्कजः ॥ ४०२ ॥ अटित त' समाकर्ण्य स्वयंभूर्निर्ययौ पुरः । अभिमुख्यमितस्तस्य बलिनामा महामनाः ॥ ४०२ ॥ ध्वनयन् जन्यवादित त्रासयन् विद्विषां व्रजे । तर्कयन्नथ गंधर्वान् त' प्रादेति चलानुजः ||४०३ || युद्धार्थमानता ये तु ते किं. तिष्ठन्ति भूतले । अयुध्य स्थीयते स्वैरं कथं कार त्वया ! || ४०४ || निशम्य वचनं तस्य मधुरानोत्थितोऽग्निवत् । तमाषव्या नश क्षिप्रं घाणपूर क्षिपन्नलं ॥ ४०५ ॥ चापादिनीसमुद्र तध्वानेन ध्वनिता नगाः । जुश्च केकिनो प्रांत्या जोमृतस्य प्रवर्षिणः ॥ विद्याधर भूमिगोचरी और राक्षस सभी जिसके चरण कमलोंको नमस्कार करते हैं ऐसे राजा मधुने नारायण स्वयंभू का सारा नगर घेर लिया ॥३६८ -- ४०१ ॥ जिस समय राजा स्वयम्भ ने अपने ऊपर चढकर मधुको आता सुना वह शीघ्रही नगरसे बाहिर निकल पड़ा एवं अपने भाई बलभद्र के साथ शीही मधुका सामना कर डाला | ॥ ४०२ ॥ संग्रामके वाजोंको वजाता हुआ शत्रु को भयभीत करता हुआ और गन्धर्वो को अनेक प्रकार के तर्क वित्तकोंमें उलझाता हुआ नारायण स्वयम्भू जिसमय प्रति नारायण मधुके सामने आकर खड़ा हुआ उस समय उसने मधुसे इस प्रकार कठिन वचन कहे जो पुरुष यहां पर युद्धके लिये आये हैं वे पृथ्वीतल पर विद्यमान है वा नहीं हैं ? रे अधम मधु ! यदि तू यहां युद्ध करनेके लिये आया है तो तू युद्ध कर । विना युद्ध के वृथा तू क्यों यहां पर पड़ा हुआ है ! | राजा मधु तो पहिले से ही आग बबूला था जिस समय उसने स्वयम्भू के इस प्रकार कठिन वचन सुनें वह और भी क्रोधसे पजल गया वह अग्निके समान जाज्वल्यमान होकर शीघ्र ही उठ खड़ा हुआ एवं वाणोंसे अच्छादित कर समस्त जगतको अन्धकार मय बना दिया ॥ ४०४ ॥ ४०५॥ उस समय तोपोंके शब्दोंसे समस्त पर्वत शब्दायमान हो गये थे एवं उस शब्दको वर्षने वाले मेघोंके शब्द समझकर मयूरगण शोर मचाते थे ॥ ४०६ ॥ उस समय संग्राम भूमिमें हाथी 特に空間を作 શ
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy