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________________ विमल २०५ PANAY गण्मासालिज' व्यं तस्मै तानि । दशै राजा धन किंविकारण्यात यावः ॥ ३२२|| निःस्वभूयं पण प्राप्तो नटोमानी तदा नृप । शिक्षां च यांस चुकता नृपः ॥ ३२३ ॥ हियतिकंबित होय होयतां हठात् । हन्यतां हन्यतां वेगा दुगाचेति जनान्नृपः || ३२४ । नासवेन सिकारि पुरात्रि। मुनिना मानलं दुःख जनकतया गया ॥ ३२० ॥ पद्मा लया फल वा स्वं स्त्री तनुचरा अदि सत्य मानोमास्तादल' मानिना। नरः || ३२६ ॥ ना नालसति मान ेन न्यनो नै प्रसन्न कर दिया ।। ३२० - ३२९ ॥ राजा महासेन अत्यंत कृपण और निर्दयी था । वह चित्रकमा | नामका नट वरावर छह मासतक चंपापुरीमें ठहरा रहा और अपनी ही ओरसे भोजन आदिका खर्च उठाता रहा। राजा ने कंजूसीके कारण एक पाई भर भी धन नहीं दिया ॥ ३२२ ॥ जब उस चित्रकर्मा नटके पास खाने पाने को कुछ भी न बच्चा तब उसने राजा महासेनको दानकी शिक्षा देनी प्रारंभ कर दी और कुछ धन प्राप्त करने के लिये प्रार्थना भी की । नटकी बात राजाको अच्छी नहीं लगी इसलिये वह एकदम उसपर कुपित हो गया । वस रोष में आकर शीघ्र ही उसने अपने सेवकोंको यह आज्ञा देदी इस नटके पास जो इसीका कुछ माल मसाला हो, सब जबरन छीन लो और दुष्टको मार भगाओ ॥ ३२३ - ३२४ ॥ राजाकी यह कठोर आज्ञा सुन यद्यपि सारी प्रजाको बहुत मानसिक दुःख हुआ था तथापि उस शांत परिणामी नटको शीघ्र ही नगर से वाहिर निकाल दिया ॥ ३२५ ॥ संसार में यह बात प्रसिद्ध है कि जो पुरुष मानी हैं उनको लक्ष्मी कुटुंब धन स्त्री शरीर और पृथ्वी सब कुछ चला जाय उनके चले जानेसे मानियोंको विशेष कष्ट नहीं | होता परंतु उनका अपमान नहीं होना चाहिये। जिस प्रकार प्राणों के बिना शरीर किसी कामका नहीं और भूषणोंके बिना बहुमूल्य वस्त्रों की शोभा नहीं उसी प्रकार चाहे पुरुष कितना भी भूषण वस्त्रोंका धारक हो एक मान बिना उसकी शोभा नहीं मानी पुरुषका मान ही भूषण है KKKKK 居 मंड स
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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