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________________ महावीरविणामागोमाघामाहोरपन्छिः । मावीर विगामापीमावामादीरकि ! ॥ १६ ॥ अपरभृति हे भ्रागर्न र्मानमहोद्धा हतो न भूपते दूतः फथ त्व इंतुमिच्छसि ।।१७। अयुबालोऽपि मामाकी चर' इंस्येव ज्ञातुमाश्रयता तत्कण भ्रातस्तव चित्त By साधिनो ॥ ३१८॥ (क) मत्र जम्यूपति द्वीप रजते रत्नखनिभिः । भारते चास्ति पाया पुरी शारल्सेविता ॥३१६ ॥ तत्र राजा | महासेनः कामामः कमलेक्षणः वनीता महादेव्या नाम्ना मदन वेगवा ।। ३१६ विशालायां नटण्यातो नाम्नाभूकत्रकर्मकः । दाता. र त नृपं मत्वा समाकदिनेऽध सः॥२२०॥नानानाट्यरसैर्भावल येस्तान मनारमैः । रजामास तं भूपचित्रकर्मा स सूत्रधृत।।३२२।। मारने का प्रयत्न करता है ? कभी नहीं ॥ ३१५ ॥ भाई जो राजा उत्कट मानी है-उत्तम मर्यादाके पक्षपाती हैं उनके द्वारा आजतक कभी भी दूतको मारा हुआ नहीं सुना। तुम भी उत्तम मर्यादाके पक्षपाती पुरुष हो तुम इस भेंटके रक्षक दूतके मारने के इच्छुक क्यों हो ! तुम्हें भी कभी भी इस दूतको नहीं मारना चाहिये । विशेष क्या जातुधान-राक्षस जो कि सदा मांसको खानेवाला है वह भी कभी दूतको नहीं मारता । में इसी संबंधकी तुम्हें एक कथा सुनाता हूं तुम ध्यान पूर्वक गे.कि भांति भांतिके रत्नोंकी खानियोंसे शोभायमान इसी जंबू द्वीपके भरत क्षेत्रमें एक चंपा नामकी विख्यात पुरी है जो कि दानियोंसे शोभायमान है । किसी समय उसका रक्षण करनेवाला राजा महासेन था जो कि सुंदरतामें कामदेवकी तुलना करता था। कमलके समान विशाल नेत्रोंका 15 धारक था उसकी पटरानीका नाम मदनवेगा था जो कि एक अद्वितीय संदरीथी और उसके संबंध से राजा महासेनकी भी अत्यंत शोभा थी ॥३१६---३१६ ॥ उसी समय विशाला पुरीमें एक चित्रकर्मा नामका नट रहता था उसने सुन रक्खा था कि रोजा महासेन बड़ा दानी है इसलिये एक दिन चंपापुरीमें वह राजा महासेनके पास आया और नाट्य कलाके अत्यंत विद्वान उस चित्रकर्मा नामके नटने भांति भांतिके नाट्य रसोंसे उत्तमोत्तम भाव लय और तानोंसे राजा महासेनको walakhelarlsharaa
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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