SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बज! काममुद। रुविनाशिन् कथ जीवो याति स्वर्ग सुखपदे ॥ १६ ।।दनादिमहादुःखसंकुले श्वनसागरे । पतत्वेव कथंका. वदत्वं शिवनायक! ॥ १७० । कुलतिर्यग्भवे जोवो मानुषत्वं श्रयेत्कर्थ । पुरुषत्वं च नारीत्वं जायते केन कर्मणा ॥ १७१ ।। अल्पाय नाय ! वायुः कथं जीव: प्रजायते । भोगहीनः कथं देव ! तत्संयुक्तः कथं बद ॥१७॥ सोभाग्य चाथ दीर्भाग्य कथ संपचते नणां | बुद्धिमान् चिबुद्धिः केन कर्मणा जायते नरः ॥ १७३ ॥ पंडितश महामूर्यो धीरश्री:: कातरस्तथा । लक्ष्मीयुक्तो विलक्ष्मीकः कथं भक्ति पूर्वक सुना एवं अन्तमें भगवान जिनेन्द्रको भक्तिपूर्वक नमस्कार कर वलभद्र.धर्मने इसप्रकार । भगवान् जिनेन्द्रसे पूछा--- भगवन् । आप तोनों लोकके वधु हैं । कर्मरूपी पर्वतको छिन्न भिन्न करनेवाले वन हैं। कामदेवको नष्ट करनेवाले हैं। समस्त प्रकारके रोगोंके विनाशक हैं कृपाकर बताइये यह.. जीव :- कैसे तो अनेक सुखोंको प्रदान करनेवाले स्वर्गके अन्दर जन्म लेता है और कैसे छेदन भेदन आदि अनेक प्रकारके दुःखोंसे व्याप्त नरक रूपी समुद्रमें गिरता है ? प्रभो! आप मोक्ष लक्ष्मांक स्वामी है इसलिये कृपाकर कहें ॥ १६८–१७० ॥ कृपानाथ ! कैसे तो यह जोव तियञ्च योनिके | अन्दर जन्म लेता है ? कैसे यह मनुष्य योनिके अन्दर जन्म लेता है ? मनुष्य योनिके अन्दर भी किन कर्मके उदयसे इसे मनुष्य होना पड़ता है और कैसे स्त्री हो जाता है । वहुत जीव थोड़ी आयुके धारक दीख पड़ते हैं और बहुतसे अधिक आयुवाले दीख पड़ते हैं इसलिये कृपया कहिये कि- कैसे तो थोडी आयुवाले जीव होते हैं और कैसे बहुत आयुवाले जीव होते हैं । संसारमें वहुतसे जीव ऐसे हैं जिन्हें कुछ भी भोग सामग्रो प्राप्त नहीं और बहुतसे ऐसे हैं जिन्हें नानाप्रकार के भोग प्राप्त हैं कृपाकर वतलाइये कि कैसे तो मनुष्य भोग रहित उत्पन्न होते हैं और कैसे भोग / ब सहित उत्पन्न होते हैं ? संसारमें किस कारणसे मनुष्योंका सौभाग्य होता है और किस कारणसे दुर्भाग होता है ? कैसे मनुष्य बुद्धिमान होते हैं और कैसे निर्वृद्धि होते हैं ? कैसे पण्डित और YOYKEMPEPARK RKKAISECRETREKKARE
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy