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________________ ** 4 AYANAYANAYAYYY इति चिन्ताध्यथापन्नं दृष्ट्वा श्रीनिजांधवं । अत्रवीनोलबासस्कः किं त्वं चिंतास प्रभो ! इस पृष्टो जुहावेति स्वयंभूरक्तलोचनः । श्रूयतां वचन भ्रातर्यथा दृष्ट प्रत्रक्ष्यते ॥ ८॥ किष्कि धापत्तने राजा महधि: मुन्दराभिधः । स्वप्रतापजिताशेषशयोऽभदुगुणाकरः ।। ८१ ॥ कमला सु'दरी तस्य सुता परमसुदरी । नाम्ना विज्ञानलावण्यरूपाभरणभूषिता ॥ ८२ । ईदृक्षा विद्यते नैय पामिनी काश्यपीत है 1 पृथस्थलनितंबाच्या हितावहसस्वरा भृशं ॥८३॥ सयेति विहिता भ्रातः! प्रतिज्ञा दुष्करा नणाम् । मंदाराणां महामाला यस्य कंठे प्रवर्तते ।। ८४ ॥ वृणेऽहं परप्रमम्गा सादर नापर. वरम् । इति श्रुत्वा पिता तस्याश्चिंतयामास मानसे ।। ८५ ।। भाई तुम इस डालीको देखकर क्या विचारने लग गये ? उस समय स्वयंभ चिंतासे अत्यन्त Ka व्यथित थे। मारे क्लेशसे उनके नेत्र म्लान हो रहे थे इसलिये दुःखित हो उन्होंने उत्तरमें अपने भाईसे यह कहा-असमयमें होनेवाले इन फल फूलोंको देखकर मैंने जो कल्पना की है। Me! मैं आपसे कहता हूँ आप ध्यान पूर्वक सनें। किष्किंधा नगरमें एक सुन्दर नामका राजा था जो कि विशाल सम्पत्तिका स्वामी था। अपने प्रचण्ड प्रतापसे समस्त शत्रुओका जीतनेवाला था एवं अनेक उत्तमोत्तम गुणोंका स्थान था ॥७९८१॥ राजा सुन्दरकी स्त्रीका नाम कमला था जो कि एक अलौकिक सुन्दरी थी और उससे उत्पन्न | परमसुन्दरी नामकी कन्या थी जो कि विज्ञान कला कौशल, लावण्य मनोज्ञ रूप रूपी भ षणोंसे भूषित थी ।८२॥ विशेष क्या विशाल और स्थल नितम्बोंसे शोभायमान हंसके समान मोठे वचन वोलनेवाली रमणी परम सुन्दरीके समान कोई कन्या न था ॥ ३ ॥ अत्यन्त मानिनी उस कन्याने यह प्रतिज्ञा कर रक्खी थी कि जिस मनुष्यके गलेमे मन्दार जातिके कल्पवृक्ष पुष्पोंकी माला होगी उसी मनुष्यको प्रेमपूर्वक बड़े आदरसे में वरूगी। दूसरे कामदेवके समान भी वरको में न वरूगी। परम सुन्दरीके पिताने जव परम सुन्दरीकी यह प्रतिज्ञा सुनी तो उसे बड़ी घबड़ाहट हुई | hd एवं वह उसकी कठिन प्रतिज्ञासे मन ही मन विचारने लगा Maa Ka
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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