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संश्च पूजितांर्जियारवैः ।। ७३ ॥ तत्प्रभावादन रम्यं वाटिका कुसमान्वितां । दुन्दुभिध्वानमाशम्प मालाकारोऽगमत्पुरं ॥४॥ नानापुष्पफलाको कर संविधाय च । नूपाक्षया पुरो गत्वा तत्करडं ममाच सः ॥ ७५ 11 अकालजनितां दृष्ट्वा स्वयंभूरितिमा. गया । चिरं स्यांते महाचिंताग्रस्तवेता व्यचिंतयत् । ७६ ॥ .अकालीनं यदा पुष्पमृतोः सद्भाषषावक । बिमहायुद्ध
दृश्यते श्रूयते च पा ॥ ७ ॥ तदा राजाशुभनयं दुर्भिक्षं वा प्रजापतेः । देशभः समादिष्टः प्रधमैः पूर्वसूरिभिः ॥ ७८ ॥ 12 और स्वर्गोंके देव भक्ति पूर्वक पूजते थे, उस समवशरणके मध्य भागमें विराज गये ॥ ६७--७३ ।।
| जिस वनमें भगवान विमलनाथ विराजे थे वह वन महा मनोहर दीख पड़ता था उसमें रहनेवाले
वृक्ष, फल फूलोंसे व्यात थे और नौवत घुरती रहती थी। उस वनके रक्षक मालोने जब बनको यह ke विचत्र शोभा देखी और नौवतका शब्द सुना तो उसे बड़ा आनन्द हुआ।अनेक प्रकारके पुष्प और न
कलोंसे उसने अपनी टोकनो भर ली। वह द्वारावतीकी ओर चल दिया,एवं राजाकी आज्ञासे राज|| सभामें प्रवेश कर उसने उस डालीको महाराज स्वयंभकी भेंट कर दी॥ ७४-७५ ॥ राजा स्वयं* भूने ज्योंही असमयमें होनेवाले फल पुष्प देखे त्योंही मालीसे तो उसने कुछ पूछा नहीं किंतु अपने * आप मारे चिंताके उसका मुख म्लान हो गया और मन ही मन वह इस प्रकार चिंता करने लगा
असमयमें उत्पन्न होनेवाले ये फल फल ऋतु कालके वाधक हैं, जो वस्तु जिस समयमें होने वाली है उस समयमें न होकर यदि अन्य समयमें होगी तो उससे कभी भी ऋतुका निश्चय नहीं किया जा सकता। असमयमें होनेवाले जो ये कल फल दीख पड़ते हैं उनका फल यही जान पड़ता
है कि या तो किसोके साथ महा भयंकर युद्ध करना होगा या कहींसे विशाल युद्धके समाचार | - सुनने में आवेंगे। प्राचीन आचार्योंने असमयमें जायमान पदार्थोंको देखनेका यह फल बतलाया -
है कि या तो राजाका अशुभ होगा या अकाल पड़ेगा अथवा देशका भङ्ग होगा ।। ७६-७८ ॥ अपने * S भाई नारायण स्वयंभ को इस प्रकार चिन्ता और क्लेशसे क्लेशित देख उसके बड़े भाई बलभद्र kधर्मने कहा
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