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________________ ' - . . . सम HTTEN तेऽमरा प्रचारिणः ॥ १६॥ (४०७८२०) एवमार्जिन देवा दोमुक्त गुणान्वितं । वैराग्यरससम्पूर्ण क्षतमायाधियर्जिनं ॥ १७॥ सद्विरङ्गीकृतं यश्च पालनोय प्रयक्षतः। अन्यथैव मनुष्याणां हास्यता भवति ध्रुवं ।।१८॥शरा विवेकिनः शताः दातारो गुणिनो विदः । प्रारम्च ये प्रकुर्वन्ति स एव भुवनोसमाः। १६ ॥ जोधेनानेको भुक्त रामाराज्यधनोहच। सुखं तृप्यति नो जीवो भोगा. दीना तथापि च ॥ २०॥ भष'शेऽभवन् मरिचक्रमाविक्रमाः क्रमात् । त एव निधनं याता निश्चलं किं हि गण्यते॥ २१॥ इन्द्रिया णि प्रणश्यति पापमायाति पृष्ठतः । तस्कृतं तेन बंधः स्यात् श्वनभाजी ततो भवेत् ॥ २५ ॥ सांनिध्याज्जायते सिद्धिश्चन्दनानां भवा PI भगवन् ! जो मार्ग दोषोंसे रहित है। अनेक गुणोंका भंडार है। वैराग्य रससे परिपूर्ण है । छल छिद्र कपटसे रहित है और सर्वोत्तम कल्याणके अभिलाषी सजन जिसे अपनाते हैं उसी मार्गको इस समय आपने स्वीकार किया है इसलिये आपको वह अवश्य प्रयत्न पूर्वक पालन करना Pal चाहिये। यदि आप उसे धारण कर छोड़ देंगे तो आप निश्चय समझिये सोरा संसार आपकी | हली करेगा ॥ १७ ॥ १८ ॥ जो महानुभाव किसी भी कार्यका आरम्भ कर उसे पूरा करते हैं वे ही | मनुष्य संसारमें शूरवीर समझे जाते हैं तथा वे ही विवेकी. समर्थ, दाता, गुणवान और विद्वान माने | जाते हैं एवं वे हो संसारके भूषण गिने जाते हैं॥६॥ इस जीवने संसारमें रहकर स्त्री राज्य और धनसे जायमान सुख अनेक बार भोगा है तथापि भोग आदिसे इसकी तृप्ति नहीं होती ॥ २० ॥ | भगवन् ! आपके इस पवित्र वंश, अतुल संपत्तिके स्वामी बड़े बड़े चक्रवर्ती और प्रतापी राजा होगये हैं और कम क्रमसे काल उन्हें अपना कवल बनाता चला गया है इसलिये संसारमें अविनाशी पदार्थ कोई जान नहीं पड़ता ॥ २१ ॥ इन विषय भोगोंमें लीन रहने पर इंद्रियां नष्ट होती | हैं। पापका आत्रव होता है। पापके आस्रवसे बन्ध होता है एवं उस बन्धकी कृपासे नियमसे इस PM जोवको नरकमें जाना पड़ता है ॥ २२ ॥ प्रभो। जिस प्रकार चंदन वृक्षके सम्बन्धसे आक धतूरे आदिके वृक्ष भी चन्दन स्वरूप होजाते हैं उसी प्रकार जब आप सरीखे महानुभावके संबंधसे KYAKChakke MeRKE KAHERS REKHERE
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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