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________________ स्या YAS TT वृद्धत्वे विषयान् जेतु विधातु सत्तपो नरः । मेरोरारोहणे पंगुरायन इन यो विभुः ॥ ११ ॥ नरकस्य मत द्वार कामः क्रोधश्च लोभता । इति अयं परित्यज्य शमिनो याति चिन्प्रयं ।। १२ । गाईभ्ये धर्ममिच्छनि रामामा ममता हताः । खपुष्पैस्ने दुराचारा वा वंध्यासुन रोखर ॥ १३॥ अणोयस्येव संगेऽपि राग विठ्ठल मानसे | संभावनं शिवस्यैव प्रादुःखर विषाण वत् ॥१४॥ तदा प्रादुर्वभूवास्य PA अशिष्टं शानमंजसा । सारस्वताइयो देवा आगमन् प्रतियोधने ।। १५॥ विधात्यष्ट रातान्येव सहस्त्राणां च सप्तक। चतुल क्षणमा नूनं IS तथापि जिस प्रकार तुन्दित-बड़े पेटयाला मेरु पर्वत पर नहीं चढ़ सकता उसी प्रकार वह पुरुष भी वृद्धावस्थामें विषयोंपर विजय और उत्तम तपका आचरण नहीं कर सकता ॥ ११ ॥ काम क्रोध और लोभ ये तीनों नरकके द्वार माने जाते हैं-इन्हींको अपनानेसे नरकमें जाना पड़ता है इसलिये 7 व मुनिगण इन तीनोंका सर्वथा त्यागकर चिन्मय-मोक्षरूपी परम सुखका रसास्वादन करते है ॥ १२ ॥ जो महानुभाव स्त्री और लक्ष्मीकी ममतामें फंसकर गृहस्थ अवस्थामें भी धर्मकी | IN अभिलाषा रखते हैं वे महानुभाव बन्ध्या स्त्रीके पुत्र के शिरपर आकाशके फूलोंसे बने मुकुटको देखना चाहते हैं इसलिये वे दुराचारी हैं-सम्यक् चारित्रके पालन करने वाले नहीं हो सकते सार यह है कि आकाशके पुष्पोंसे गुथे हुए मुकुटसे युक्त बांझके पुत्रका होना जिस प्रकार असंभव है उसी प्रकार | क्षी धन आदि के मोहमें मुढ़ होकर धर्मका पालन करना भी असंभव है। स्त्री आदिके मोहमें ग्रस्त पुरुष कभी वास्तविक धर्म पालन नहीं कर सकता ॥ १३ ॥ यदि चित्तमें कणमात्र भी परिग्रहके का प्रन्टर राग बना रहे तो जिस प्रकार गधेके सीगोंका होना संसारमें असम्भव है उसी प्रकार मोक्ष IT को प्राप्ति असंभव है—रागकी विद्यमानतामें कभी मोक्ष नहीं प्राप्त हो सकती ॥ १४ ॥ इस प्रकार Sवचार करते करते भगवान विमलनाथ के संसार, शरीर आदिसे उदासीनता रूप विशिष्ट ज्ञान हो | गया एवं उसी समय सारस्वत आदि लोकांतिक देव भगवानके प्रतियोधने के लिये यहां आकर उपस्थित होगये ॥१५॥ ये देव चार लाख सात हजार आठसौ बीस४०७८२० थे ओर ये सब एक भवातारी बाल ब्रह्मचारी होते हैं॥१६॥ वे भगवान विमलनायके सामने खड़े होकर इस प्रकार कहने लगे- 5 MaraYASTER PRITarkarKET
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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