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कागर नाथ नमः सर्वेऽपि सागराः । मधीभूता जलाकीर्णा लेखिनी मेरुपयेतः ॥ १६ ॥ भारती कविदेद्रा लिखति त्वद्गुणान् सदा। न पारयति ते नूनं प्रांतपर्यंत तत्पराः॥ १०॥ अभिष्टुत्यैव सानंदो देवेंद्री अयमुच्यरन् गजारूढ़ जिनं कृत्वा पफाण पत्तन प्रति॥ १११ ॥ जयध्वानः सुरी समप्रांगणं व्यापितं भृशं । गर्जद्दु'दुभिनाकाशे प्रोच्यते किं यशोऽहतः ।। ११२॥ विष्टरेऽथ समारोप्य जिन
तातं व मातरं । अभिषिच्य ददातिस्म बाल विमलयाहनं ॥ १॥३॥ शरण कुण्डलीभूताः कृता देवाप्सरोगणाः । सर्वतो ननृतंत्येव ल्यै Ke हर एक जगह बैठकर आपके गुणोंको लिखनेवाले बनाये जाय तो भी वे आपके गुणोंके लिखने में
समर्थ नहीं हो सकते बस इस प्रकार सौधर्म स्वर्गके इंद्रने भगवान विमलनाथकी स्तुतिको एवं जय जयकार शब्द के साथ उन्मे ऐरावत हाथीपर सवार का बड़े समारोहसे कंपिला नगरीको और चल दियः ॥ १०७. -१११॥ कंक्लिा नगरीमें आकर राजा कृतवर्माका आंगन देवों के जय जयकार
शब्द और बजते हुए नगाड़ों के शब्दांसे व्याप्त हो गया ठीक है त्रिलोकी भगवानकी प्रचण्ड कीर्तिके Me| विषयमें क्या कहा जा सकता हैं ॥ ११२ ॥ सौधर्म स्वर्गके इंद्रने आंगनके मध्य भागमें भगवान
माता और पिताको एक मनोज्ञ सिंहासन पर विराजमान किया । सुगंधित जलसे उनका अभिषेक - किया और भगवान विमलनाथको उन्हे सौंप दिया ॥ ११३ ॥ इंद्रने अनेक देवांगनाओंको कुन्ड.
लाकार खड़ा किया एवं वे विशेष भाव और लयों के साथ अनेक प्रकारके नृत्य करने लगी उस समय भगवानके जन्मोत्सबके उपलक्षमें ताल और स्वरों के साथ विशेष विशेष गाने होने लगे
आनन्द मयी बाजे बजने लगे। जिसमें अनेक प्रकारकी ढारें दीख पड़ती हैं। मिलना विछुड़ना रूप हाव भाव दीख पड़ते थे। अनेक प्रकारके नाटकों के कार्य नजर पड़ते हैं। फिरना आदि दीख नहीं पड़ता रत्न जड़ित बांसरियोंके रस भरे राग युक्त होते हैं एवं मनको प्यारे महा रागोंकी जहां पर उत्पत्ति है ऐसे उस आनन्द नाटकको देवोंने किया ॥ ११४---११६ ॥ भगवान विमलनाथके माता पिताको देवोंने नाना प्रकारके भूषण और वस्त्रोंसे शोभायमान किया। आप पवित्र हैं बड़े
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