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________________ मातई तर्जितध्वांतं लोहितामं प्रतायिनं 1 मार्गामार्ग दिर्शतं वा सद्गुरु शामलोचनं ॥ २३ ॥ रमनुसन्मनोहारि तिमियुग्म तथाहि च । पंकजाच्छादितं पूर्ण पानोर्यघंटयुग्मकं ॥ २५ ॥ तडाग जलसांभीरं फुल्लतामस्सांचित । लोलकल्लोलमालाभिर्गर्जतं जलधि परं ॥ २५ ॥ रत्नस्वर्णात्मकं चित्रं विष्टर दैवतं पुनः ।व्योमयानं क्यणतं वे किंकिणीभिः समुद्रवत् ॥ २६ ॥ नागलोक महादीप्त भतां नागकुमार. | कैः । रत्नपुजं ज्वलंतं च निधू में ज्वलनं ततः ॥ २७ ॥ ददशैतान महास्वप्नान् प्रांते राशी मुखे गज । विशंतं पर्वतोत्तुर्ग यामे पाश्चात्यके Nथा। जलती हुई अग्निकी ज्वालाके समान ललोई का धारक था। एवं जिसप्रकार ज्ञानरूपी लोचन के धारक उत्तम गुरु यह उत्तम मार्ग हैं और यह कुमार्ग है इसप्रकारका उपदेश देनेवाले होते हैं उसीप्रकार वह सूर्य भी अच्छे और बुरे मार्गका बताने वाला था अर्थात् सूर्यके उदयकाल में ही यह ज्ञान होता है कि यह मार्ग जाने योग्य है और यह मार्ग नहीं जाने योग्य है । अंधकारमें अच्छे बुरे मार्गका ज्ञान नहीं होता । इसलिये अज्ञानतासे खड्डेमें भी गिर जाना पड़ता है A ॥ २३ ॥ आठवें रूप्नमें माताने मोनोंका युगल देखा जो कि जलमें किलोल करने वाला था संदर। था और अपनी चाल ढ़ालसे मनको हरण करता था नवमें स्वप्नमें सुवर्णमयी दो घड़े देखे जिनके मुख कमलोंसे ढके हुए थे और वे जलसे भरे हुए थे ॥२४॥ दशवे स्वप्नमें एक महामनोहर तालाब | देखा जो कि जलसे लबालब भरा था एवं फूले हुये कमलोंसे व्याप्त था। ग्यारहवें स्वप्नमें एक | विस्तीर्ण समुद्र देखा जो कि चंचल तरंगोंकी मालाओंसे गर्जता था। वारहवे स्वप्नमें एक महान मनोज्ञ सिंहासन देखा जो कि रत्न और सुवर्णोसे रचा हुआ था और देवमयी था । तेरहवें स्वप्न में विमान देखा जो कि छोटी छोटी घंटरियोंसे शब्दायमान था एवं शब्द करने और विस्ती तामें समुद्रकी उपमा धारण करता था ॥२५–२६ ॥ चौदहवेंस्वप्नमें नाग कुमारोंका भवन देखा जो कि अत्यंत देदीप्यमान था एवं नाग कुमार जातिके देवोंसे व्याप्त था । पंद्रहवें स्वप्नमें रतोंकी राशि देखी जो कि अत्यंत देदीप्यमान थी । एवं सोलहवें स्वप्नमें जलती हुई निर्धम ke अग्नि देखी ॥ २७ ॥ रात्रिके शुभ पश्चिम भागमें जिससमय माता जय श्यामा सोलह स्वप्न र पापहवामkumar
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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