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परमं विवेक वचन चक्रेश्वरत्वं वृषात् । श्रीतार्थ करता कमान गुणगणो न स्यादहो किं नणां ॥ १५२ ॥ ॥ इति श्रीविमलनाथपुराणे भट्टारकीरत्नभूषणाम्नायाल'कार ब्रह्मकृष्णदासविरचिते ब्रामंगलदाससाहाय्य
सापक्षे पासेजचरसहस्रारेंद्रषिभूतिवर्णनोनाम द्वितीयः सर्गः समातः ॥२॥ इस प्रकार अपने छोटे भाई ब्रह्म मंगलदासकी सहायता पूर्वक भट्टारक रिलभूषणकी आम्नायके अलंकार स्वरूप ब्रह्म कृष्णदास द्वारा विचित श्रीविमलनाथ पुराणमें पद्मसेन राजाके जीय सहसारेद्रका विमति वर्णन
करनेवाला दूसरा सर्गसनास हुआ।॥२॥
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तीसरा सर्ग। चायेऽहं चर्चितं स्वस्थ काश्यपं मैरिकत्वियं । अटा स्वर्ण लतामामिस्तिरस्कारविप्रमं ॥ १ ॥ अथ जं)मति सोपे विख्यातेऽ नेकवस्तु IN
भिः। समास्ति भारत वर्ष मेरोईक्षिणमामभाक् ॥ २॥ तत्रय कपिला नाम्ना विद्यते परमा पुरी । द्रोषमुका गुणैर्युक्ता धनाढ्या स्वर्ण 12 21 जो भगवान देवोंके द्वारा भलेप्रकार. पूजित हैं। काश्यप गोत्रके तिलक हैं। गरुआ रंगकी
प्रभाके धारक हैं एवं जटाखरूप सुवर्ण की लताओंकी प्रभासे जिन्होंने सूर्यकी प्रभाको भी नीचा कर दिया है उन विमलनाथ भगवानको मैं नमस्कार करता हूँ ॥१॥ इसी संसारमें एक
जंबूद्वीप है जो कि अनेक प्रसिद्ध २ चीजोंसे विख्यात है । जम्बूद्वीपके ठीक मध्यभागमें मेरु पर्वत है | KI और उसकी दक्षिणदिशामें प्रसिद्ध भरतक्षेत्र है ॥ २॥ भरतक्षेत्रके अन्दर एक कंपिला नामकी
नगरी है जो कि अपनी शोभाले महा मनोहर है। समस्त प्रकारके दोषोंसे रहित है । नाना प्रकारके | लागुणोंसे अलंकृत है । धनसे व्याप्त और सुवर्णमयी महलोंकी शोभासे जाज्वल्यमान है ॥ ३॥ किसी
समय उसका रक्षण करने वाला राजा कृतवर्मा था जो कि पुरुदेव वंशसे उत्पन्न था। राजा
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