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________________ नल KYAYYFRICKMAYATRY TRY मानेन शात्वानंदमयोऽभवत्। तथाभूतं विलोक्याशु त्वलं चक्रुः सुरांगनाः॥१३३॥ काचिन्मुकुटसंदर्भ चर्करीतिरुम सादात् । सोमबासा सि काचिद्वा रोपयामास तत्तनौ ॥१४॥ आरुरोपांगदे काचित्काचिन्मुक्तागुणं गले । काचिद्विलेपनं चक चंदनम संभवं ॥१३५' माले विशेषकं काचित्पराग सुदनिगा रत्नलोहितमध्यांका चकार मेखलां कटौ॥३६॥ काचित्सुरावला:तस्य दर्पण चित्ततर्पणं । दर्शयामास कामाख्या सहासा परमिता ।। १५७ ॥ हामिदपूसाहामा वाजसन्निभं । चामरांदोलनेरुन्चे सुखयामास सादरं ।। |१३८॥ एवमादिक शृगारभूषितो देवराड बभौ । दृष्ट्या नाकसमुद्र ता मिंदिमित्यचिंतयस् ॥ १३६ ॥ इदं धर्मफलं नूर स्वर्गराज्य महा मनोहर सुगंधित वस्त्र उसे पहिनाने लगीं। किसीने उसे अङ्गद (बाजू बंध ) पहिलाया । कोई अगलेमें हार पहिनाने लगी। किसी किसीने मलयागिरि चन्दनसे उस देवके शरीरका उबटन किया कोई कोई ललाटपर तिलक लगाने लगी। किसी किसीने पद्मराग मणिकी बनी हुई एवं मध्यभागमें रत्नोंकी लालिमा ले अङ्कित करधनी उस देवके कटिभागमें पहिनाई। कोई कोई कामसे आकुलित और हंसने वाली देवांगना उस देवके दिव्य रूपपर मुग्ध हो चित्तको आनन्द प्रदान करनेवाला दर्पण दिखाने लगी तथा कोई कोई देवांगना जिसप्रकार मंगलदासके बड़े भाई कृष्णादासको पूरमल्ला नामकी स्त्री चमर ढार कर सुखी बनाती थी उसीप्रकार उस देवको भी चमर ढार ढार कर बड़े आदरसे सुखी बनाने लगी॥ १३३-१३८ ॥ इसप्रकार अनेक शृंगार जनक वस्तुओंसे सजा गया वह देवराज अत्यंत शोभायमान जान पड़ने लगा तथा सहसार स्वर्गमें होनेवाली दिव्य लक्ष्मीको देखकर वह देव इसप्रकार विचारने लगा6 अनेक देवोंसे सेवित यह स्वर्गका राज्य धर्मका फल है। यह दिव्य राज्य मुझं उत्तम पुण्यकी कपासे मिला है क्योंकि धर्मले संसारमें सब कुछ प्राप्त हो सकता है ऐसी कोई भी बस्तु नहीं जो ल/धर्मकी कृपासे न मिलती हो । बस इस प्रकार अपने मनमें विचार कर यह सहसार स्वर्गका स्वामी देव अनेक देवीं और देवोंसे वेष्ठित हो तीर्थ यात्राके लिये मेरु पर्वतपर गया नन्दीश्वर आदि द्वीप | में भी जिन चैत्यालयोंकी बंदनाके लिये भ्रमण करने लगा इस प्रकार असंख्याते द्वीप और समुद्रों पYYYY)
SR No.090538
Book TitleVimalnath Puran
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size14 MB
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