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विशाल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
८७ दुःखों का क्षय/नाश हो, ( कम्मक्खओ) कर्मों का क्षय हो ( बोहिलाहो ) घोधि अति र सत्र नाम हो, सुगमणं ) सुगति में गमन हो ( समाहिमरणं ) सम्यक् प्रकार आधि-व्याधि-उपाधि-रहित समाधिपूर्वक मरण हो ( मज्झं ) मुझे ( जिनगुणसंपत्ति ) जिनेन्द्रदेव के गुणरूप सम्पत्ति की प्राप्ति हो।
।। इति रात्रिक दैवसिक प्रतिक्रमण समाप्त ।।