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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
८३ ९ नारायण-त्रिपृष्ट, द्विपृष्टि, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक, दत्त, लक्ष्मण और कृष्ण।
१२ चक्रवर्ती— भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, सुभौम, पद्म, हरिषेण, जयसेन और ब्रह्मदत्त । १४ अतिशय
दस होते हैं जन्म के, दस ही केवलज्ञान ।
चौदह होते देवकृत, ये चौतीस बखान । १० अतिशय जन्म केनित्यं निःस्वेदत्वं, निर्मलता क्षीर-गौर-रुधिरत्वं च । स्वाधाकृति-संहनने, सौरूप्यं सौरभं च सौलक्ष्यम् ।।३८।। अमितवीर्यता च, प्रिय-हित वादित्व-मन्यदमित-गुणस्य । प्रथितादशविख्याता, स्वतिशय-धर्मा स्वर्ष मुबो देहस्य ।।३९।। नं. भ. ।। १. पसीना रहित शरीर २. निहार रहित शरीर ३. दुग्धवत् सफेद खून ४. समचतुरस्त्रसंस्थान ५. वनवृषभनाराचसंहनन ६. सुन्दर रूप ७. सुगन्धित शरीर ८. शरीर में १००८ लक्षण ९. अतुलबल और १० हितमित प्रिय वाणी।
१० केवलज्ञान के अतिशयगम्यूति-शत चतुष्टय, सुभिक्षता-गगन-गमन- मप्राणिवधः । भुक्त्युपसर्गाभावश्चतुरास्यत्वं च सर्व विषेश्वरता ।।४।। अच्छापत्व-मपक्ष्म-स्पन्दश्च सम-प्रसिद्ध-नख केशत्वम् । स्वतिशय-गुणा भगवतो घाति क्षयजा भवन्ति तेऽपिदशैव ।।४।। नं.भ. ।।
१. चारों दिशाओं में १००-१०० योजन सुभिक्ष २. आकाश में गमन ३. हिंसा का अभाव ४. कवलाहार का अभाव ५. उपसर्ग का अभाव ६. एक मुख चतुर्मुख दिखना ७. सब विद्या का स्वामित्व ८. छाया नहीं पड़ना ९, पलकों का नहीं झपकना और १० नख और केश का नहीं बढ़ना। १४ देवकृत अतिशय
देघरचित हैं चार दश अर्द्धमागधी भाष, आपस माँहि मित्रता निर्मल दिश आकाश ।