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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३१.३१ प्रकार के कर्मों के विपाक में—ज्ञानावरणी के ५ भेद दर्शनावरणो के ९, वेदनीय के २, मोहनीय २, आयु के ४, नामकर्म के २ भंद ( शुभ-अशुभ ) गोत्र के २, अन्तराय के ५ सब मिलाकर ज्ञानावरणादि आटों कर्मों संबंधी ३१ भेद । ३२. बत्तीस प्रकार के जिनोपदेश आवास मंगपुष्वा, छब्बारस चोदसा य ते कमसो । बत्तीस इमे णियमा, जिणोवएसा मुणेयव्या ।। छह आवश्यक, बारह अंग, चौदह पूर्व इस प्रकार सब मिलाकर ६-१२-१४=३२ प्रकार का जिनोपदेश है। ३३. ३३ प्रकार की आसादनापंचेव अस्थिकाया, छज्जीवणिकाय महव्यया पंच । पच मादु नाष्टा, रोनीलाम्बासगाभणिया ।।२।। पाँच प्रकार के अस्तिकाय, छह प्रकार के जीवों के निकाय, पाँच महाव्रत, आठ प्रवचन माता और जीवादि नौ पदार्थ संबंधी अनादर की भावना= ५.६+५-८+९ सब मिलाकर ३३ आसादना होती हैं। हे प्रभो ! इस प्रकार मेरे द्वारा संक्षेप में जीवों की अत्यासादना, अजीवों की अत्यासादना, ज्ञान की अत्यासादना, दर्शन की अत्यासादना, चारित्र की अत्यासादना, तप की अत्यासादना, वीर्य की अत्यासादना में उन सबके प्रति पहले दुश्चरित का आचरण मैंने किया हो, मैं दूसरों की साक्षीपूर्वक उसकी गर्दा/निन्दा करता हूँ। भूत-भविष्य, वर्तमान में होने वाले पापों का प्रतिक्रमण करता हूँ। आगे होने वाले पापों का प्रत्याख्यान करता हूँ। अविवेकी होने से मैंने आज तक जिन पापों/दोषों की गर्दा न को हो उनकी गर्दा करता हूँ | जिन पापों को निन्दा न की उनकी निन्दा करता हूँ। जिन दोषों की गुरु समीप आलोचना नहीं की उनकी गुरुसाक्षी में आलोचना करता हूँ | मैं अब दोषों का परित्याग कर आराधना को स्वीकार करता हूं, व्रत की विराधना का प्रतिक्रमण करता हूँ। हे भगवन् ! रात्रिक-दैवसिक क्रियाओं में मेरे द्वारा कोई भी अतिचार, अनाचार रूप दोष हुए हों, तत्संबंधी मेरे समस्त पाप आज मिथ्या हों,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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